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________________ ७ हजार ३ हजार २हजार हिन्दी: प्रथम दो संस्करण (२६ जनवरी २००९ से अद्यतन) तृतीय संस्करण (७ अप्रैल २००९, महावीर जयंती) मराठी: प्रथम संस्करण (७ अप्रैल २००९, महावीर जयंती) गुजराती: प्रथम दो संस्करण (१५ फरवरी २००९ से अबतक) वीतराग-विज्ञान (हिन्दी/मराठी) के अप्रेल माह के सम्पादकीय रूप में योग : २हजार : : १२ हजार २६ हजार प्रकाशकीय (तृतीय संस्करण) तत्त्ववेत्ता डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल की नवीनतम कृति "ध्यान का स्वरूप: जिनागम के आलोक में" का ७ हजार प्रतियों के दो संस्करण मात्र दो माह में समाप्त हो गये। अतः अब यह तृतीय संस्करण प्रकाशित करते हुए हमें अपार हर्ष हो रहा है। जिसप्रकार मंत्र संक्षिप्त होता है, परन्तु उसका प्रभाव असीमित होता है; उसीप्रकार इस लघुकाय कृति में वह सबकुछ आ गया है; जो ध्यान के संदर्भ में आज की आवश्यकता है। गागर में सागर समाहित हो गया है। मुक्ति का मूल कारण आत्मध्यान ही है। यह एक सर्वमान्य तथ्य है। इसलिए प्रत्येक आत्मार्थी को ध्यान का स्वरूप समझना अत्यन्त आवश्यक है। जिनमंदिरों में अरहंत भगवान के जितने भी बिंब विराजमान हैं; वे सभी ध्यानमुद्रा में ही हैं। इससे यही प्रतिफलित होता है कि ध्यानावस्था ही धर्म परिणत अवस्था है। ध्यानावस्था में कोई किसी से किसी भी प्रकार की बात नहीं करता- इससे भी यही सिद्ध होता है कि ध्यानावस्था ही सर्वोत्कृष्ट अवस्था है। जिनवाणी में ध्यान के चार भेद कहे गये हैं, उनका विषय भी अनेकानेक प्राचीन ग्रंथों में आचार्यों ने अति विस्तार के साथ लिखा है। उस विस्तार में से इस काल में अत्यधिक उपयोगी और अति आवश्यक विषय को डॉ. भारिल्ल ने इस कृति में समेटने का सफल प्रयास किया है। इस कृति से ध्यान का महत्त्व तो समझ में आयेगा ही, साथ ही साथ ध्यान के लिए तत्त्वज्ञान का अध्ययन अनिवार्य है - यह भी स्पष्ट होगा। राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर के भी हम आभारी हैं। यदि उनका ध्यान के स्वरूप पर व्याख्यान करने के लिए डॉ. भारिल्ल को आमंत्रण नहीं मिलता तो इस कृति के बनने की संभावना न के बराबर थी। ___ इस कृति को सुन्दररूप में टाइप सैटिंग करनेवाले श्री दिनेश शास्त्री बड़ामलहरा, साहित्य प्रकाशन के प्रभारी श्री अखिलजी बंसल एवं अल्पमूल्य में जन-जन तक पहुँचाने की भावना रखनेवाले दातारों के भी हम आभारी हैं। उनकी नामावली यथास्थान अंकित है। सभी पाठक इस कृति का लाभ लेंगे ही, इस विश्वास के साथ विराम लेता हूँ। - ब्र. यशपाल जैन, एम.ए. प्रकाशनमंत्री, पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर मूल्य : ४ रुपए प्रस्तुत संस्करण की कीमत कम करनेवाले दातारों की सूची १. डॉ. शरद जैन एवं परिवार, शिवाजी नगर, भोपाल ११११.०० २. श्रीमती गुणमाला सुरेशकुमारजी जैन, कुचड़ौद ५०१.०० ३. श्रीमती एवं श्री सुन्दरलालजी व्हौरा, बांसवाड़ा ५०१.०० ४. श्री विमलकुमारजी रठोड़िया, लकड़वास २५१.०० ५. श्रीमती जैना देवी जैन, एटा ६. श्रीमती त्रिशला जैन, एटा २०१.०० ७. श्रीमती सजनबाई जैन, जावरा मुद्रक : प्रिन्ट 'ओ' लैण्ड बाईस गोदाम, जयपुर कुल : २८८६.००
SR No.008348
Book TitleDhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size437 KB
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