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आत्म कथ्य
धन्य दिगम्बर मुनि दशा, धन्य दिगम्बर भेष । अंग-अंग से झरत है, निर्विकार संदेश ।।
क्या/कहाँ अतभावना प्रकाशकीय प्रस्तावना
५-१२ आत्मकथ्य
१३-१४ मुनियों के विचार
१५-१६ १. देवगढ़ : देवों का गढ़
१७-२१ २. मुनिपद की महिमा
२२-२७ ३. मुनिधर्म साधन की प्रक्रिया
२८-३२ ४. दिगम्बर मुनि का स्वरूप और चर्या
३३-४६ ५. मुनि के २८ मूलगुण
४७-५९ ६. साधु के दस स्थितिकल्प
६०-६९ ७. मुनि की आहार चर्या, नग्नता और द्रव्यलिंगी के भेद ७०-७८ ८. आचार्य के पंचाचार
७९-९० ९. धर्म के दस लक्षण (मुनि के उत्तर गुण) ९१-९८ १०. बाईस परीषहजय (मुनि के उत्तर गुण) ९९-११५ ११. बारह तप (मुनि के उत्तर गुण)
११६-१३० १२. निश्चय एवं व्यवहारनय विशेषज्ञ
१३१-१४१ १३. बारह भावना : सामान्य विवेचन (मुनिकेउत्तर गुण) १४२-१५१ १४. बारह भावना : विशेष विवेचन
१५२-१७२ १५. मुनिराज के भेद-प्रभेद
१७३-१९३ १६. मुनि का स्वरूप और उनकी महिमा
१९४-२०७ १७. तत्त्वज्ञानी रहित निग्रंथपना निष्फल
२०८-२११ १८. लेखक के अन्य महत्वपूर्ण प्रकाशन
२१२ १९. अभिमत
२१३-२१६
मन में किंचित् है नहीं, राग-द्वेष का लेश। वाणी में हित-मित वचन, काया सहत क्लेश ।।
पंच महाव्रत, समिति पन पंचेन्द्रिय जय पाय । षट् आवश्यक, सप्त गुण, पाले मन-वच-काय ।।
जीवन चर्या सहज ही, चलती है निर्दोष। आगम के अनुसार ही,
लगे न किंचित् दोष ।। बारह भावन चितवन, धारे दस विधि धर्म। परिषह अरु उपसर्ग सह, काटे वसु विध कर्म ।।