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________________ छहढाला का सार पहला प्रवचन होनी चाहिए, दुखान्त नहीं होनी चाहिए। ये दुखान्त कहानियाँ विदेश से आई हैं। शेक्सपियर ने सबसे पहले दुखान्त नाटक लिखे, उनकी नकल पर हिन्दुस्थान में लिखे जाने लगे। दो हजार वर्ष पूर्व भरत मुनि हुये हैं। उन्होंने महाकाव्य और नाटक के नियम लिखे हैं। उनमें साफ-साफ लिखा है कि प्रत्येक कहानी का अन्त सुखमय होना चाहिए। जैनधर्म में कहानी को तबतक समाप्त नहीं करते, जबतक जीव मोक्ष न चला जाये। चाहे आदिनाथ हों, चाहे पार्श्वनाथ या महावीर हों; उनके पच्चीसों भव सुनाये जायेंगे और अन्त में उन्हें मोक्ष में पहुँचा देंगे; तभी पुराण समाप्त होगा। इसलिए वह भी सिद्धान्तशास्त्र है। ____ मैं आपसे कहता हूँ कि भारतीय नियम के अनुसार यदि हर कहानी को सुखान्त होना चाहिए, तो जो कहानियाँ शादी पर समाप्त हुईं; वे सुखान्त कहाँ हुई, वे तो भोगान्त हैं। लड़का-लड़की की शादी हुई और सुखी हो गये ? अरे भाई ! अब तो दुःख की शुरूआत हुई है। ___ छहढाला की पहली ढाल में यही तो बताया है कि चारों गतियों में सुख है ही नहीं, दुःख ही दुःख है। इसमें चारों गतियों के दु:खों का वर्णन है। नरक गया तो दुखान्त और स्वर्ग चला गया तो सुखान्त - यह बात कहाँ से लाये? हम भगवान आदिनाथ की पूजा करते हैं, बहुत पुरानी पूजन है, उसकी जयमाला में आता है - आदिश्वर महाराज हो, म्हारी दीनतणी सुन वीनती। चारों गति के मांहि मैं दुःख पाये सो सुनो ।। ऊँट बलद भैंसा भयो, जापैं लदियो भार अपार हो। नहिं चाल्यौ जरी गिर पस्यो, पापी देसोटन की मार हो ।। म्हारी दीनतणी सुन वीनती।। क्या कह रहे हैं - ऊँट हुआ, बैल हुआ और भैंसा हुआ। इन तीनों को गाड़ी में जोता जाता है। बैलों को बैलगाड़ी में, ऊँटों को ऊँटगाड़ी में और भैंसों को भैंसागाड़ी में। उनपर उनकी शक्ति से ज्यादा भार लाद दिया जाता है। जब वे चल नहीं पाते हैं और गिर पड़ते हैं, तब पापी लोग उन्हें डंडों से मारते हैं। उन्हें दंडा मार-मार कर उठाया जाता है। शक्ति नहीं है, गिर पड़ा है; फिर भी कुछ दया नहीं। ___ पूजन चल रही है, पूजा में सारे वाद्ययंत्र बज रहे हैं, नाचनेवाले नाच रहे हैं; तब अचानक बीच में ही एक व्यक्ति बोल उठता है - आज के आनन्द की जय । अरे, भाई ! यदि आनंद आ रहा है तो रो क्यों रहे हो? आँखों में से आँसुओं की धारा क्यों बह रही है ? सोटन की मार पड़ रही है तो आनन्द कहाँ से आ रहा है ? उसे पता ही नहीं कि मुँह से क्या निकल रहा है, वह तो झाँझमंजीरा में ही मग्न हो गया है। अरे ! उसमें लिखा है कि चारों गतियों में दुःख ही दुःख हैं, सुख नहीं है। छहढाला में भी यही लिखा है। इसकी पहली ढाल में तो चारों गतियों के दुःखों का वर्णन है। तिर्यंचगति के पशु-पक्षियों के दुःख तो हमें दिखते ही हैं। मारा जाना, काटा जाना, छेदन-भेदन, भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी आदि न जाने कितनी प्रतिकूलतायें हैं। तिर्यंचगति के दुःखों का वर्णन करते हुये लिखा है - काल अनन्त निगोद मँझार, बीत्यो एकेन्द्रीय तन धार । निकसि भूमि जल पावक भयो, पवन प्रतेक वनस्पति थयो।। एकेन्द्रिय अवस्था में तो निगोद में रहा और फिर वहाँ से निकलकर भूमि, जल, अग्नि, वायु और प्रत्येकवनस्पति हुआ। साधारण वनस्पति और प्रत्येक वनस्पति के भेद से वनस्पति दो
SR No.008345
Book TitleChahdhala Ka sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherDigambar Jain Vidwatparishad Trust
Publication Year2007
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Karma
File Size237 KB
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