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आपके बनाये हये सभी ग्रंथ छन्दोबद्ध हैं। उन ग्रन्थों के नाम हैं - १. तत्त्वार्थबोध, २. बुधजन सतसई, ३. पंचास्तिकायसंग्रह, ४. बुधजनविलास। ये चारों ग्रन्थ क्रम से विक्रम सम्वत् १८७१, १८७९, १८९१, १८९२ में लिखे थे।
इसके अलावा आपने छहढाला नामक ग्रन्थ की भी रचना की, जिससे प्रेरणा पाकर ही कविवर पण्डित दौलतरामजी ने छहढाला लिखी, जो अधिक प्रचलित हुई। पण्डित दौलतरामजी ने अपनी छहढाला में इसका स्वयं उल्लेख किया है
इक नव वसु इक वर्ष की, तीज शकल वैशाख ।
कस्यो तत्त्व उपदेश यह, लखि 'बुधजन' की भाख । प्रचलित कवि वृन्द, रहीम, तुलसीदास, कबीर आदि स्वनामधन्य कवियों के दोहों से इनके दोहे किसी भी अंश में कम नहीं हैं। बुधजन सतसई की विषय-वस्तु -
प्रस्तत सम्पूर्ण कति दोहा नामक छन्द में पद्यबद्ध है। इसमें कुल ७०२ छन्द हैं। इस कृति का प्रारंभ कविवर पण्डित बुधजनजी ने 'देवानुरागशतक' से किया है। जैसा कि इस प्रकरण के नाम से ही स्पष्ट है कि इसमें १०० दोहा छंदों के माध्यम से जिनेन्द्र देव का स्तवन किया गया है।
दूसरा प्रकरण 'सुभाषित नीति' है, जिसमें २०० दोहों के माध्यम से 'गागर में सागर' की उक्ति को चरितार्थ करते हुये अत्यन्त कम शब्दों में नीति को प्रस्तुत किया गया है। इसके पश्चात् १२३ दोहों में 'उपदेशाधिकार' निबद्ध है; तथा 'विद्या प्रशंसा', 'मित्रता और संगति' - इसप्रकार के दो छोटे प्रकरण हैं, जिनका विषय नाम से ही स्पष्ट होता है।
आगामी लघु प्रकरणों में जुआ, मांस, मद्य, वेश्या, शिकार, चोरी, परस्त्रीसंग - इन सात व्यसनों का निषेध किया गया है। 'विराग भावना' द्वारा वैराग्य भावना को प्रस्तुत कर 'समता और ममता' द्वारा ममता को छोड़ समता धारण करने का उपदेश दिया गया है।
'अनुभव प्रशंसा' में आत्मानुभव की प्रशंसा करते हये 'गरु प्रशंसा' नामक प्रकरण में गुरु की महिमा का बखान किया गया है। तथा अन्त में 'कवि प्रशस्ति' में रचना काल-स्थान का वर्णन करते हुये मंगल भावना भायी गई है।
- सौभाग्यमल जैन