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________________ बुधजन सतसई || ॐ नमः सिद्धेभ्यः ।। बुधजन-सतसई देवानुरागशतक (दोहा) सन्मतिपद सन्मतिकरन', बन्दों मंगलकार। वरनो बुधजन सतसई, निजपरहितकरतार ।।१।। परमधरमकरतार हो, भविजनसुखकरतार । नित बंदन करता रहूँ, मेरा गहि कर तार' ।।२।। परूं पगतरे आपके, पाप पगतरे दैन । हरो कर्मको सब तरह', करो सब तरह चैन ।।३।। सबलायक ज्ञायक प्रभू, घायक कर्मकलेश । लायक जानिर नमत हैं, पायक भये सुरेश ।।४।। न तोहि कर जोरिके, शिव-वनरी कर जोरि । बरजोरी २ विधिकी हरो, दीजे यो वर जोरि ।।५।। तीन कालकी खबरि तुम, तीन लोकके तात । त्रिविधिशुद्धवंदनकरूं, त्रिविधितापमिटिजात ।।६।। १. श्री वर्धमान तीर्थकर के चरण, २.अच्छी बुद्धि या सम्यज्ञान के करनेवाले, ३. पकड़कर, ४. हाथ, ५. तार दो, ६. चरणों में, ७. नष्ट करने के लिये, ८. सर्व प्रकार से, ९. जान करके, १०. सेवक, ११. मोक्षरूपी दुल्हन से पाणिग्रहण कराइये, १२. जबर्दस्ती, १३. वरदान १४. जानते हो
SR No.008343
Book TitleBudhjan Satsai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBudhjan Kavivar
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size242 KB
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