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संपादकीय बुधजन सतसई (काव्यमय) ग्रन्थ का प्रकाशन पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट जयपुर जैसी प्रभावी संस्था से होना अपने आप में गौरव का विषय है।
इस ग्रन्थ में पण्डित बुधजनजी के बनाये हुये सात सौ दोहों का संग्रह है, जिसका संशोधन पंडित नाथूरामजी प्रेमी साहब ने किया था। यह ग्रंथ पूर्व में जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय मुंबई से छप चुका है।
आध्यात्मिक भजन संग्रह का प्रकाशन सितम्बर २००६ में जब पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट से हुआ था, उस समय पण्डित बुधजनजी का जीवन-चरित्र लिखते समय बुधजन सतसई ब्र. यशपालजी जैन के देखने में आई और उसमें संग्रहीत कुछ दोहों को उन्होंने पढ़ा । उन्हें पढ़कर उनकी भावना हुई कि इस ग्रन्थ का पठन-पाठन समाज में होना चाहिये। उन्होंने मुझसे पूछा कि इस ग्रन्थ की प्रतियाँ वर्तमान में उपलब्ध हैं या नहीं ? मैंने उनको इसकी प्रतियाँ वर्तमान में उपलब्ध न होने की बात कही तो उन्होंने मुझसे तत्काल कहा कि यह ग्रन्थ प्रकाशित होना चाहिये । उसी समय यह कार्य करने के लिये उन्होंने मुझसे कहा।
मैंने इस ग्रन्थ को पहले अनेक बार पढ़ा था. इसमें कई शब्द ठेठ जयपरी भाषा के हैं। उन शब्दों का अर्थ वर्तमान में समझने में कठिनाई आती थी। इसके बारे में ब्रह्मचारीजी का सुझाव रहा कि ऐसे शब्दों का अर्थ प्रत्येक पृष्ठ के नीचे फुटनोट में दे दिया जाये, जिससे पढ़नेवालों को सुविधा होवे।
इसके अतिरिक्त कुछ स्थानों पर आदरणीय प्रेमीजी ने प्रश्नचिह्न ?' लगा रखे थे। मैंने इस विषय में ब्रह्मचारीजी से कहा तो उन्होंने हस्तलिखित प्रति की फोटोस्टेट श्री विनयचंदजी पापड़ीवाल से मंगवाकर मुझे दी। मैंने जहाँ-जहाँ ऐसे प्रश्नवाचक ?' निशान थे, वहाँ-वहाँ फोटोस्टेट प्रति में पढ़ा। उनमें से कुछ स्थानों पर श्री प्रेमीजी की बनाई हुई प्रति में जो कमी थी, उसको उससे पूरा किया और कुछ स्थानों पर समझ में नहीं आया, वहाँ आदरणीय प्रेमीजी की शैली के अनुसार वैसे ही ?' निशान लगा दिये हैं। विद्वान पाठकगण उन स्थानों का अर्थ समझकर पढ़ने का कष्ट करें।
मैंने अपनी अत्यन्त तुच्छ बुद्धि के अनुसार कठिन शब्दों के जो अर्थ लिखे हैं, उनमें कहीं भूल प्रतीत हो तो विद्वान पाठक गण उन्हें सुधार कर पढ़ने का कष्ट करें और प्रकाशन विभाग पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट जयपुर को सूचित करने का अवश्य कष्ट करें, ताकि भविष्य में जब भी दुबारा यह ग्रन्थ छपे, उसमें सुधार कर लिया जावे।
-सौभाग्यमल जैन, सी-१०७, सावित्री पथ, राजेंद्र मार्ग, बापूनगर, जयपुर (राज.) ३०२०१५
कविवर बुधजनजी
का संक्षिप्त जीवन परिचय कविवर बुधजनजी जिनका कि दूसरा नाम भदीचन्दजी था, जयपुर निवासी थे। आपके पिता का नाम निहालचन्दजी था और आपका गोत्र बज तथा जाति खण्डेलवाल थी। आपकी जन्मतिथि के बारे में अभी तक कुछ पता नहीं चला है। आपने विद्या अध्ययन पण्डित मांगीलालजी के पास किया था, जो जयपुर में किशनपोल बाजार में टिक्कीवालों के रास्ते में रहते थे।
आप दीवान अमरचन्दजी के मुख्य मुनीम थे। दीवानजी प्रायः अपने खास कार्य इनके मार्गदर्शन में ही कराया करते थे।
एक बार दीवानजी ने आपको एक जैन मन्दिर बनवाने को कहा। आपने आज्ञा पाते ही एक की जगह दो जैन मन्दिर बनवाना प्रारम्भ करा दिया और दीवान साहब ने उनसे दोनों जैन मन्दिरों में दिल खोलकर काम कराने को कहा। दोनों जैन मन्दिरों के तैयार होने पर उनका पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव सम्वत् १८६४ में बड़े धूमधाम से हुआ। जिनमें से एक मन्दिर तो छोटे दीवानजी के नाम से प्रख्यात है। दूसरे मन्दिर पर दीवानजी कविवर का नाम लिखवाना चाहते थे, परन्तु कविवर का कहना था कि इस पर मेरा कोई अधिकार नहीं है, आपका ही नाम लिखा जाना चाहिये; परन्तु दीवानजी ने उसपर भदीचन्दजी का ही नाम लिखवाया और इसी नाम से उसे विख्यात किया। आपने इस मन्दिर की दीवार पर यह उपदेश खुदवाया था -
१. समय पाय चेत भाई, २. मोह तोड़, विषय छोड़, ३. भोग घटा।
कविवर बुधजनजी उच्च कोटि के पण्डित थे। आपकी शास्त्र पढ़ने की तथा शंका समाधान करने की शैली बहुत ही श्रेष्ठ तथा रुचिकर थी। आपकी शास्त्रसभा में अन्य मतावलम्बी भी आते थे। आप उनकी शंकाओं का निवारण भलीभाँति करते थे।
आप उच्च कोटि के कवि थे। आपकी कविता का विषय भव्य प्राणियों को जैनधर्म के सिद्धान्त समझाना तथा विषय-प्रवृत्ति के मार्ग से हटाकर सुखद निवृत्ति मार्ग में लगाना था।
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