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जुआ निषेध
(दोहा)
बुधजन सतसई येते मीत न कीजिये, जती लखपती बाल । ज्वारी चारी तसकरी', अमली अर बेहाल ।।४४७।। मित्रतना विश्वास सम, और न जगमें कोय । जो विश्वास को घात है, बड़े अधरमी लोय ।।४४८।। कठिन मित्रता जोड़िये, जोड़ तोड़िये नाहिं। तोड़ेते दोऊन के, दोष प्रगट है जाहिं ।।४४९।। विपत मेटिये मित्रकी, तन धन खरच मिजाज । कबहूँ बांके वक्त में, कर है तेरो काज ।।४५०।। मुखते बोले मिष्ट जो, उरमें राखे घात । मीत नहीं वह दुष्ट है, तुरत त्यागिये भ्रात ।।४५१।। अपने सो दुख जानके, जे न दुखावे आन ।
ते सदैव सुखिया रहे, या भाखी भगवान ।।४५२।। १. दूत-चुगलखोर, २. चोर,
३. नशेबाज, ४. दरिद्री,
५.बुरे समय में
जननी लोभ लवार की, दारिद दादी जान । कूरा कलही कामिनी, जुआ विपति की खान ।।४५३।। धन नाशे नाशे धरम, ज्वारी धरे कुध्यान । धकाधूम धरबो करे, धिक धिक कहे जहान ।।४५४।। ज्वारी को जोरू तजे, तजे मात पितु भ्रात । द्रव्य हरे बरजे लरे, बोले बात कुबात ।।४५५।। ज्वारी जाय न राजमें, करि न सके व्यापार । ज्वारी की प्रतीति नहिं, फिरता फिरे खुवार ।।४५६।। बांधे ज्वारी चीथरा, डोले बने कंगाल। कबहू चौसर पहिरके, धरे फैटमें माल ।।४५७।। अशुचि असन की ग्लानि नहिं, रहे हाल बेहाल । तात मरत हू रत रहे, तजे न जूआ ख्याल ।।४५८।। कहा गिनति सामान जन, पांडव भये खराब । जूआ खेलत पुरुष की, क्यों हू रहे न आब' ।।४५९।। जैसो खान चंडाल के, तैसो खावे खान । नीच ऊँच कुल की तबे, कैसे होय पिछान ।।४६०।।
निजपुर में आज मची होरी
(तथा) निजपुर में आज मची होरी । निज.।।टेक।। उमगि चिदानंदजी इत आये, उत आई सुमतीगोरी ||१||निज.।। लोकलाज कुलकानि गमाई, ज्ञान गुलाल भरी झोरी ।।शनिज. ।। समकित केसर रंग बनायो। चारित की पिचुकी छोरी ।।३।।निज.।। गावत अजपा गान मनोहर, अनहद झरसौं बरस्यो री।।४ । निज. ।। देखन आये बुधजन भीगे, निरख्यौ ख्याल अनोखो री।।५।।निज.।।
- कविवर पण्डित बुधजनजी
१. दुःखी,
२. इज्जत