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________________ बुधजन सतसई दारू' धातु पखान में, नाहिं विराजे देव । देवभाव भायें भला, फले लाभ स्वयमेव ।।२२७।। तृष्णा दुख की खानि है, नंदनवन संतोष । हिंसा बंधकी दायिनी, दया दायिनी मोष ।।२२८।। लोभ पाप को बाप है, क्रोध कूर जमराज । माया विष की बेलरी, मान विषम गिरिराज ।।२२९।। व्यवसाईते दूर क्या, को विदेश विद्वान । कहा भार समरथ को, मिष्ट कहे को आन ।।२३०।। कुल की शोभा शीलते, तन सोहे गुनवान । पढ़िवो सोहे सिधि भये, धन सोहे दे दान ।।२३१।। असंतोषि दुज" भ्रष्ट है, संतोषी नृप हान । निरलज्जाकुलतिय अधम,गनिका सलज अजान ।।२३२।। कहा करे मूरख चतुर, जो प्रभु कै प्रतिकूल । हरि हल हारे जतनकरि, जरे जदू' निरमूल ।।२३३।। खेती लखिये प्रात उठि, मध्याने लखि गेह । अपराह्ने धन निरखिये, नित सुत लखि करि नेह ।।२३४।। विद्या दिये कुशिष्य को, करे सुगुरु अपकार । लाख लड़ावो भानजा, खोसि लेय अधिकार ।।२३५।। सुभाषित नीति ना जाने कुलशील के, ना कीजे विश्वास । तात मात जातें दुखी, ताहि न रखिये पास ।।२३६।। गनिका जोगी भूमिपति, वानर अहि मंजार। इनते राखे मित्रता, परे प्रान उरझार ।।२३७।। पट पनही बहु खीर गो, औषधि बीज अहार । ज्यों लाभे त्यों लीजिये, कीजे दुःख परिहार ।।२३८।। नृपति निपुन अन्याय में, लोभ निपुन परधान । चाकर चोरी में निपुन, क्यों न प्रजा की हान ।।२३९।। धन कमाय अन्याय का, वर्ष दश थिरता पाय । रहे कदा षोड़श बरस, तो समूल नश जाय ।।२४०।। गाड़ी तरु गो उदधि वन, कंद कूप गिरराज । दुरविषमें नो जीव का, जीवो करे इलाज ।।२४१।। जाते कुल शोभा लहे, सो सपूत वर एक । भार भरे रोड़ी चरे, गर्दभ भये अनेक ।।२४२।। दूधरहित घंटासहित, गाय मोल क्या पाय । त्यों मूरख आटोपकरि', नहिं सुघर है जाय ।।२४३।। कोकिल प्यारी वैनते, पति अनुगामी नार । नर वरविद्याजुत सुघर, तप वर क्षमाविचार ।।२४४।। दूरि वसत नर दूत गुन, भूपति देत मिलाय। ढांकि दूरि रखि केतकी, वास प्रगट है जाय ।।२४५।। १.लकड़ी, २. बंध की देनेवाली, ४. मिष्ट वचन बोलने से कोई अन्य नहीं रहता, सब अपने हो जाते हैं, ६. वेश्या, ७. बलदेवजी, ९. प्यार करो, १०. छीन लेता है ३. बेल, ५. ब्राह्मण, ८.यादववंशी, १. मार्जार-बिल्ली, ४. घूरेपर ७.सुगन्ध २. जूते, ५. आडंबर-ठाठबाट, ३. प्रधान-मंत्री, ६.गुणरूप दूत,
SR No.008343
Book TitleBudhjan Satsai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBudhjan Kavivar
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size242 KB
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