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मुझ में ज्ञान है। शरीर में ज्ञान नहीं है।
मैं जानता हूँ। शरीर कुछ जानता नहीं है।
पाठ छठवाँ
| दिनचर्या
ज्ञानचन्द - समझ गये तो बताओ,
हाथी जीव है या अजीव ? मैं जीव हूँ। हीरालाल - जैसे हमारा शरीर अजीव है, वैसे ही हाथी आदि
सब जीवों का शरीर भी अजीव है, पर उनकी आत्मा तो जीव ही है।
__यह समझ तो लिया, पर इसके जानने से लाभ क्या है ? यह भी तो बताओ। ज्ञानचन्द - इसको जाने बिना आत्मा की सच्ची पहिचान नहीं
हो सकती और आत्मा की पहिचान बिना सच्चा सुख नहीं मिल सकता तथा हमें सुखी होना है, इसलिए इनका ज्ञान करना भी आवश्यक है।
जीव-अजीव का ज्ञान कर हम स्वयं भगवान बन सकते हैं। प्रश्न -
१. जीव किसे कहते हैं? २. अजीव किसे कहते हैं? ३. नीचे लिखी वस्तुओं में जीव-अजीव की पहिचान करो :
हाथी, तुम, कुर्सी, मकान, रेल, कान, आँख, रोटी, हवाई जहाज,
हवा, आग। ४. जीव-अजीव की पहिचान से क्या लाभ है?
अध्यापक - बालको ! आज हम तुम्हारे नाखून और दाँत देखेंगे।
अच्छा, बोलो रमेश ! तुम कितने दिनों से नहीं नहाये? रमेश - जी, मैं तो रोज नहाता हैं। अध्यापक - प्रतिदिन नहाने वाले के हाथ-पैर इतने गंदे नहीं होते
हैं। हो सकता है तुम रोज नहाते हो, पर दो लोटे पानी सिर पर डाल लेना ही नहाना नहीं है, हमें अच्छी तरह मल-मल कर नहाना चाहिए।
इसीप्रकार हमें अपने दाँत साफ करने के लिए प्रतिदिन प्रात:काल मंजन भी करना चाहिए। जो बच्चे मंजन नहीं करते हैं उनके मुँह से बदबू आती रहती है, उनके दाँत कमजोर हो जाते हैं और गिर जाते हैं।