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दिनेश हाँ भाई, नहीं जानता, अब तुम बताओ। जिनेश - सुनो ! मन्दिर के दरवाजे पर पानी रखा रहता है। हमें चाहिए कि सबसे पहिले चप्पल-जूते खोलकर पानी से हाथ-पैर धोकर फिर भगवान की जयजयकार करते हुए तथा तीन बार नि:सहि नि:सहि नि:सहि बोलते हुए मन्दिर में प्रवेश करें।
दिनेश निःसहि का क्या अर्थ होता है ?
जिनेश निःसहि का अर्थ है सर्व सांसारिक कार्यों का निषेध । तात्पर्य यह है कि संसार के सब कार्यों की उलझन छोड़ कर मन्दिर में प्रवेश करें।
दिनेश - उसके बाद ?
जिनेश - उसके बाद भगवान की वेदी के सामने ॐ जय जय जय नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु णमो अरहंताणं आदि णमोकार मंत्र एवं चत्तारि मंगलं आदि पाठ बोलते हुए जिनेन्द्र
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भगवान को अष्टांग नमस्कार करें। इसके बाद चित्त को एकाग्र करके भगवान की स्तुति पढ़ते हुए तीन प्रदक्षिणा देनी चाहिए। उसके बाद फिर भगवान को नमस्कार कर नौ बार णमोकार मंत्र पढ़ते हुए कायोत्सर्ग करना चाहिए।
दिनेश - अच्छा तो शान्ति से इस प्रकार चित्त एकाग्र करके भगवान का दर्शन करना चाहिए। और....
जिनेश और क्या ? उसके बाद शान्ति से बैठकर कम से कम
आधा घंटा शास्त्र पढ़ना चाहिए। यदि मन्दिरजी में उस समय प्रवचन होता हो तो वह सुनना चाहिए। दिनेश बस ..... ।
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जिनेश - बस क्या ? जो शास्त्र में पढ़ा हो अथवा प्रवचन में सुना हो, उसे थोड़ी देर बैठकर मनन करना चाहिए तथा सोचना चाहिए कि मैं कौन हूँ ? भगवान कौन हैं ? मैं स्वयं भगवान कैसे बन सकता हूँ ? आदि, आदि। दिनेश इन सबसे क्या लाभ होगा ?
जिनेश - इससे आत्मा में शान्ति प्राप्त होती है । परिणामों में निर्मलता आती है। मन्दिर में आत्मा की चर्चा होती है। अतः यदि हम आत्मा को समझकर उसमें लीन हो जावें तो परमात्मा बन सकते हैं।
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प्रश्न -
१. देवदर्शन की विधि अपने शब्दों में बोलिए।
२. मन्दिर में कैसे और क्यों जाना चाहिए ?
१३. मन्दिर में कौन-कौन वस्तु नहीं ले जाना चाहिए ?
४. देवदर्शन करते समय क्या बोलना चाहिए ?
५. मन्दिर में क्या-क्या करना चाहिए ?
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