________________
छन्द ऋषभ अजित संभव अभिनन्दन ,
सुमति" पदम सुपार्श्व' जिनराय। चन्द्र पुहुप शीतल श्रेयांस जिन,
___ वासुपूज्य'२ पूजित सुरराय ।। विमल ३ अनन्त ४ धर्म१५ जस उज्ज्वल,
शान्ति कुन्थु अर" मल्लि मनाय । मुनिसुव्रत नमि२१ नेमि२२ पार्श्व२३ प्रभु,
वर्द्धमान२४ पद पुष्प चढ़ाय ।। छात्र - इनके जानने से क्या लाभ है ? अध्यापक - इनके उपदेश को समझकर उस पर चलने से हम सब
भी भगवान बन सकते हैं।
पाठ चौथा
| देवदर्शन
प्रश्न -
१. भगवान किसे कहते हैं ? २. तीर्थकर किसे कहते हैं? ३. तीर्थकर और भगवान में क्या अंतर है? क्या प्रत्येक भगवान
तीर्थकर होते हैं? ४. तीर्थकर कितने होते हैं ? नाम सहित बताइए। ५. क्या भगवान भी चौबीस ही होते हैं ? ६. पहले, पाँचवें, आठवें, तेरहवें, सोलहवें, बीसवें, बाईसवें और
चौबीसवें तीर्थंकरों के नाम बताइये। ७. एक से अधिक नाम किन-किन तीर्थंकरों के हैं ? नाम सहित
बताइये। १-२४ चौबीस तीर्थकरों के नाम।
दिनेश - जिनेश ! ओ जिनेश !! कहाँ जा रहे हो? जिनेश - मन्दिरजी। दिनेश - क्यों? जिनेश - जिनेन्द्र भगवान के दर्शन करने। दिनेश - अच्छा मैं भी चलता हूँ। जिनेश - तुम चलोगे तो चलो; पर पहिले यह चमड़े की पट्टी
(बेल्ट) घर खोलकर आओ। तुम्हें पता नहीं मन्दिर में
चमड़े से बनी वस्तुएँ लेकर नहीं जाना चाहिए। दिनेश - अच्छा भाई ! मैं अभी खोलकर आया।
(दोनों मन्दिर पहुँचते हैं)। जिनेश - अरे भाई ! कहाँ चले जा रहे हो ? जूते तो यहीं खोल
दो। मन्दिर के भीतर चप्पल, जूते पहिने हुए नहीं जाते। मालूम होता है पहिले तुम कभी मन्दिर आये ही नहीं, इसीकारण दर्शन करने की विधि भी नहीं जानते।