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५. यदि इन्द्रियाँ ज्ञान में मात्र निमित्त हैं तो जानता कौन है ? ६. इन्द्रिय ज्ञान तुच्छ क्यों है? पाठ में आये हुए सूत्रात्मक सिद्धान्त-वाक्य - १. जिसने मोह-राग-द्वेष और इन्द्रियों को जीता सो जिन है। २. जिन का भक्त या जिन आज्ञा को माने सो जैन है। ३. संसारी आत्मा को ज्ञान में निमित्त शरीर के चिह्न विशेष ही इन्द्रियाँ
हैं।
वस्तु के जानने में निमित्त हुईं ? बेटी - स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और आवाज व शब्दों के जानने में ही
निमित्त हुईं। माँ - स्पर्श, रस, गंध और वर्ण तो पुद्गल के गुण हैं, अत: इनके
निमित्त से तो सिर्फ पुद्गल का ही ज्ञान हुआ, आत्मा का ज्ञान
तो हुआ नहीं। बेटी - आवाज व शब्दों का ज्ञान भी तो हुआ? माँ - वह भी तो पुद्गल की ही पर्याय है। आत्मा तो अमूर्तिक चेतन
पदार्थ है, उसमें स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और आवाज शब्द हैं ही
नहीं। अत: इन्द्रियाँ उसके जानने में निमित्त नहीं हो सकतीं। बेटी - न हो तो न सही। जिसके जानने में निमित्त है, वही ठीक। माँ - कैसे? आत्मा का हित तो आत्मा के जानने में है, अत:
इन्द्रिय ज्ञान भी तुच्छ हुआ। जिसप्रकार इन्द्रिय सुख (भोग) हेय है, उसी प्रकार मात्र पर को जानने वाला इन्द्रिय ज्ञान भी तुच्छ है तथा अतीन्द्रिय आनन्द एवं अतीन्द्रिय ज्ञान ही उपादेय
४. जिससे छू जाने पर हल्का-भारी, रूखा-चिकना, ठंडा-गरम और
कड़ा-नरम का ज्ञान हो, वही स्पर्शन इन्द्रिय है। ५. जो खट्टा, मीठा, खारा, चरपरा आदि स्वाद जानने में निमित्त हो, वह
जीभ ही रसना इन्द्रिय कहलाती है। ६. सुगन्ध और दुर्गन्ध जानने में निमित्त रूप नाक ही घ्राण इन्द्रिय है। ७. रंगों के ज्ञान में निमित्त रूप आँख ही चक्षु इन्द्रिय है। ८. जो आवाज के ज्ञान में निमित्त हो, वही कर्णइन्द्रिय है। ९. ये इन्द्रियाँ मात्र पुद्गल के ज्ञान में ही निमित्त हैं, आत्मज्ञान में नहीं। १०. इन्द्रिय सुख की भांति इन्द्रिय ज्ञान भी तुच्छ है। अतीन्द्रिय सुख
और अतीन्द्रिय ज्ञान ही उपादेय है।
प्रश्न - १. जैन किसे कहते हैं ? २. इन्द्रियाँ किसे कहते हैं ? वे कितनी हैं ? नाम सहित बताइये। ३. इन्द्रियाँ किसको जानने में निमित्त हैं? ४. क्या इन्द्रियाँ मात्र ज्ञान में ही निमित्त हैं?