________________
पाठ पाँचवाँ
सदाचार भक्ष्याभक्ष्य विचार )
सुबोध - क्यों भाई प्रबोध ! कहाँ जा रहे हो ? चलो, आज तो चौराहे पर आलू की चाट खायेंगे। बहुत दिनों से नहीं खाई है।
प्रबोध - चौराहे पर और आलू की चाट ! हमें कोई भी चीज बाजार में नहीं खाना चाहिए और आलू की चाट भी कोई खाने की चीज है? याद नहीं, कल गुरुजी ने कहा था कि आलू तो अभक्ष्य है ?
सुबोध यह अभक्ष्य क्या होता है, मेरी तो समझ में नहीं आता । पाठशाला में पण्डितजी कहते हैं - यही नहीं खाना चाहिए, वह नहीं खाना चाहिए। औषधालय में वैद्यजी कहते हैं - यह नहीं खाना चाहिए, वह नहीं खाना। अपने को तो कुछ पसंद नहीं। जो मन में आए सो खाओ और मौज से रहो । प्रबोध - जो खाने योग्य सो भक्ष्य और जो खाने योग्य नहीं सो अभक्ष्य है। यही तो कहते हैं कि अपनी आत्मा इतनी पवित्र बनाओ कि उसमें अभक्ष्य के खाने का भाव (इच्छा) आवे ही नहीं। यदि पण्डितजी कहते हैं कि अक्षय का भक्षण मत करो तो तुम्हारे हित की ही कहते हैं क्योंकि अभक्ष्य खाने से और खाने के भाव से आत्मा का पतन
होता है।
सुबोध तो कौन-कौन से पदार्थ अभक्ष्य हैं ?
प्रबोध जिन पदार्थों के खाने से त्रस जीवों का घात होता हो या बहुत से स्थावर जीवों का घात होता हो तथा जो पदार्थ भले पुरुषों के सेवन करने योग्य न हों या नशाकारक अथवा अस्वास्थ्यकर हों, वे सब अभक्ष्य हैं। इन अभक्ष्यों को पाँच भागों में बांटा गया है।
सुबोध कौन-कौन से ?
प्रबोध
१ त्रसघात
२. बहुघात ४. नशाकारक
जिन पदार्थों के खाने से त्रस जीवों का घात होता हो उन्हें त्रसघात कहते हैं, जैसे पंच उदुम्बर फल। इनके मध्य में अनेक सूक्ष्म स्थूल त्रस जीव पाये जाते हैं, इन्हें कभी नहीं खाना चाहिए।
-
३. अनुसेव्य ५. अनिष्ट
जिन पदार्थों के खाने से बहुत (अनंत) स्थावर जीवों का घात होता हो उन्हें बहुघात कहते हैं। समस्त कंदमूल जैसे आलू, गाजर, मूली शकरकंद, लहसन, प्याज आदि पदार्थों में अनंत स्थावर निगोदिया जीव रहते हैं। इनके खाने से अनंत जीवों का घात होता है, अतः इन्हें भी नहीं खाना चाहिए।
सुबोध और अनुपसेव्य ?
-
प्रबोध - जिनका सेवन उत्तम पुरुष बुरा समझें, वे लोकनिंद्य पदार्थ ही अनुपसेव्य हैं, जैसे लार, मल-मूत्र आदि पदार्थ है ।