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अथ सूत्रपाहुड
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(दोहा) वीर जिनेश्वर को नमूं गौतम गणधर लार।
काल पंचमा आदि मैं भए सूत्रकरतार ।।१।। इसप्रकार मंगल करके श्री कुन्दकुन्द आचार्यकृत प्राकृत गाथा बंध सूत्रपाहुड की देशभाषामय वचनिका लिखते हैं - प्रथम ही श्रीकुन्दकुन्द आचार्य सूत्र की महिमागर्भित सूत्र का स्वरूप बताते हैं -
अरहंतभासियत्थं गणहरदेवेहिं गंथियं सम्मं । सुत्तत्थमग्गणत्थं सवणा साहंति परमत्थं ।।१।।
अर्हद्भाषितार्थं गणधरदेवै: ग्रथितं सम्यक् ।
सूत्रार्थमार्गणार्थं श्रमणा: साधयंति परमार्थम् ।।१।। अर्थ - जो गणधरदेवों ने सम्यक् प्रकार पूर्वापरविरोधरहित गूंथा (रचना की) वह सूत्र है। वह सूत्र कैसा है ? सूत्र का जो कुछ अर्थ है, उसको मार्गण अर्थात् ढूंढने जानने का जिसमें प्रयोजन है
और ऐसे ही सूत्र के द्वारा श्रमण (मुनि) परमार्थ अर्थात् उत्कृष्ट अर्थ प्रयोजन जो अविनाशी मोक्ष को साधते हैं । यहाँ गाथा में 'सूत्र' इसप्रकार विशेष्य पद नहीं कहा तो भी विशेषणों की सामर्थ्य से लिया है।
भावार्थ - जो अरहंत सर्वज्ञ द्वारा भाषित है तथा गणधरदेवों ने अक्षरपद वाक्यमयी गूंथा है और सूत्र के अर्थ को जानने का ही जिसमें अर्थ-प्रयोजन है - ऐसे सूत्र से मुनि परमार्थ जो मोक्ष
अरहंत-भासित ग्रथित-गणधर सूत्र से ही श्रमणजन । परमार्थ का साधन करें अध्ययन करो हे भव्यजन ।।१।।