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= क्यों पढ़े अष्टपाहुड़ - जिसप्रकार मुमुक्षु जीव समयसार पढ़कर आत्मज्ञान की ओर सम्यक्त्व की ओर उन्मुख होते हैं, उसीप्रकार दर्शन/ज्ञान/चारित्र की सुरक्षा एवं निर्मलता किसप्रकार बढ़ाई जावे, यह ज्ञान अष्टपाहुड़ के स्वाध्याय से प्रगट होता है।
साधक जीव के जीवन में साधना के दौरान बहुत आरोह-अवरोह आते हैं, अनेक अवसरों पर अपने परिणामों की शुद्धता/अशुद्धता के निर्णय में वह स्वयं शंकित हो जाता है। अवसर पाते ही अपने शिथिलाचारों को अनेक तर्कों/कुतर्कों से यह जन/मानव/समाज पुष्ट करने लगता है। इस शिथिलाचार रूपी मदोन्मत्त गज की सीमा में रखने के लिए अष्टपाहुड़ एक अंकुश है।
आचार्य कुन्दकुन्द की अमरकृति अष्टपाहुड़ ही जन/जनतंत्र में व्याप्त शिथिलाचार की शुद्धि का अमोघ शस्त्र है। ___ कालक्रम के अनुसार इस अवसर्पिणी काल में धर्म की मर्यादा/प्रभाव निरंतर घटता जाता है एवं अधर्म/अनीति/शिथिलाचार बढता जाता है। ऐसे समय में तो इसकी उपादेयता असंदिग्ध है।
अष्टपाहुड़ के कर्ता कुन्दकुन्दाचार्य दर्शनपाहुड़ में ‘दंसणमूलोधम्मो - सम्यग्दर्शन धर्म का मूल है' यह कहकर सम्यक्त्व की महिमा बताते हैं एवं 'दंसणहीणो ण वंदिव्वो - जो सम्यग्दर्शन से रहित है उनकी वंदना नहीं करना चाहिए, दंसणभट्टस्स णत्थि णिव्वाणं - जो सम्यग्दर्शन से रहित है उन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती' यह कहकर सम्यग्दर्शन की मोक्षमार्ग में अनिवार्यता का कथन किया गया है। ___ इसीप्रकार चारित्रपाहुड़ और बोधपाहुड़ में चारित्र और ज्ञान के स्वरूप की विशद चर्चा की गई है। भावपाहुड़ में परिणामों की शुद्धि पर विशेष बल दिया गया है। ___ मोक्षपाहुड़/लिंगपाहुड़/शीलपाहुड़ में मोक्षमार्ग के यथार्थ स्वरूप यथाजातरूप का विशद निरूपण करते हुए व्याप्त कुरीतियों के विरुद्ध कड़े शब्दों में चेताया गया है।
इसप्रकार मोक्षमार्ग का यथार्थ स्वरूप जानकर उसके निर्दोष पालन की इच्छा रखनेवाले जीवों के लिए यह ग्रन्थ दीपक की भांति है; अतः प्रत्येक मुमुक्षु जीव को इसका स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए।