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प्रकाशकीय प्रात:स्मरणीय आचार्यश्री कुन्दकुन्द रचित पंचपरमागमों में अष्टपाहुड ग्रंथ का प्रमुख स्थान है। यह ग्रंथ इसके पहले भी सहयोगी संस्थाओं के सहयोग से आठ बार प्रकाशित हो चुका है। अब हम यह नौवाँ संस्करण आपके कर-कमलों में देते हुए आनंद का अनुभव कर रहे हैं।
आठवें संस्करण में जिसतरह डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल की प्रस्तावना संलग्न थी, उसीतरह इस संस्करण में भी वह प्रस्तावना तो रहेगी ही, साथ ही अष्टपाहुड समग्र ग्रंथ का डॉ. भारिल्ल कृत हिन्दी पद्यानुवाद भी इस संस्करण में दिया है। पद्यानुवाद अत्यंत सरल, सहज एवं गद्यमय पद्य जैसा सुलभ है। इस पद्यानुवाद में आचार्य कुन्दकुन्द के मूल गाथाओं का सर्व रहस्य समझने में पाठकों को विशेष लाभ होगा। अलग रीति से मात्र पद्यानुवाद भी इसके पहले ही हम प्रकाशित कर चुके हैं।
इसके पहले के संस्करण हैंड कम्पोज द्वारा छप चके हैं। इस समय संस्था ने कम्प्यूटर से कम्पोज कराया है, इसलिए अक्षर बड़े एवं स्पष्ट हुए हैं। स्वाध्याय करनेवाले सभी को यह संस्करण अच्छा भी लगेगा; ऐसा हमें विश्वास है।
अष्टपाहुड ग्रंथ का समग्र परिचय प्रस्तावना में विस्तार से आया है; अत: हम कुछ लिखना आवश्यक नहीं समझते।
प्रस्तुत प्रकाशन को अल्प मूल्य में पहुँचाने का सर्वाधिक श्रेय शाह भगवानजी भाई कचराभाई ट्रस्ट, लन्दन को जाता है, जिन्होंने १५ हजार १४८ रुपये का आर्थिक सहयोग प्रदान किया है। उनके इस सहयोग के लिए हम उनके कृतज्ञ हैं।
कम्पोज करने का कष्टसाध्य कार्य हमारे जयपुर के श्री टोडरमल सिद्धान्त महाविद्यालय के विद्यार्थी श्री दिनेशजी जैन बड़ामलहरा ने अल्प कालावधि में सुन्दररूप से किया है। प्रूफ देखने का काम मेरे मित्र श्री सौभाग्यमली जैन जयपुर एवं सचिन शास्त्री गढ़ाकोटा ने किया है। दातारों की उदारता से ही इस ग्रंथ को अल्प मूल्य में देना शक्य हो पाया है। अत: उपर्युक्त सभी महानुभावों का हम आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद देते हैं।
प्रकाशन विभाग के प्रभारी श्री अखिलजी बंसल का योगदान भी हमेशा जैसा रहा है, उनके बिना छपाई में सुन्दरता एवं आकर्षण रहना असंभव है। अत: उन्हें भी धन्यवाद । बालचन्द पाटनी
ब्र. यशपाल जैन एम.ए. मंत्री
प्रकाशन मंत्री, सत्साहित्य प्रकाशक पाटनी ग्रंथमाला,
पण्डित टोडरमल सर्वोदय ट्रस्ट, कोलकाता (पं. बंगाल)
जयपुर