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शीलपाहुड
जह विसयलुद्ध विसदो तह थावरजंगमाण घोराणं । सव्वेसि पि विणासदि विसयविसं दारुणं होई ।।२१।। यथा विषयलुब्धः विषदः तथा स्थावरजंगमान् घोरान्।
सर्वान् अपि विनाशयति विषयविषं दारुणं भवति ।।२१।। अर्थ – जैसे विषय सेवनरूपी विष विषयलुब्ध जीवों को विष देनेवाला है वैसे ही घोर तीव्र स्थावर जंगम सब ही विष प्राणियों का विनाश करते हैं तथापि इन सब विषों में विषयों का विष उत्कृष्ट है, तीव्र है।
भावार्थ - जैसे हस्ती, मीन, भ्रमर, पतंग आदि जीव विषयों में लुब्ध होकर विषयों के वश हो नष्ट होते हैं, वैसे ही स्थावर का विष मोहरा सोमल आदिक और जंगम का विष सर्प घोहरा आदिक का विष इन विषों से भी प्राणी मारे जाते हैं, परन्तु सब विषों में विषयों का विष अति ही तीव्र है।।२१॥
आगे इसी का समर्थन करने के लिए विषयों के विष का तीव्रपना कहते हैं कि विष की वेदना से तो एकबार मरता है और विषयों से संसार में भ्रमण करता है -
वारि एक्कम्मि य जम्मे मरिज्ज विसवेयणाहदो जीवो। विसयविसपरिहया णं भमंति संसारकंतारे ।।२२।।
वारे एकस्मिन् च जन्मनि गच्छेत् विषवेदनाहत: जीवः।
विषयविषपरिहता भ्रमंति संसारकांतारे ।।२२।। अर्थ – विष की वेदना से नष्ट जीव तो एक जन्म में ही मरता है, परन्तु विषयरूप विष से नष्ट जीव अतिशयतया-बारबार संसाररूपी वन में भ्रमण करते हैं। (पुण्य की और राग की रुचि वही विषयबुद्धि है।)
भावार्थ - अन्य सादिक के विष से विषयों का विष प्रबल है, इनकी आसक्ति से ऐसा कर्मबंध होता है कि उससे बहुत जन्म मरण होते हैं ।।२२।।
हैं यद्यपि सब प्राणियों के प्राण घातक सभी विष । किन्तु इन सब विषों में है महादारुण विषयविष ।।२१।। बस एक भव का नाश हो इस विषम विष के योग से। पर विषयविष से ग्रसितजन चिरकाल भववन में भ्रमें।।२२।।