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अष्टपाहुड
___ अर्थ - जो पुरुष बड़ा भार लेकर एक दिन में सौ योजन चला जावे वह इस पृथ्वी तल पर आधा कोश क्या न चला जावे ? यही प्रगट-स्पष्ट जानो।
भावार्थ - जो पुरुष बड़ा भार लेकर एक दिन में सौ योजन चले उसके आधा कोश चलना तो अत्यंत सुगम हुआ, ऐसे ही जिनमार्ग से मोक्ष पावे तो स्वर्ग पाना तो अत्यंत सुगम है ।।२१।। आगे इसी अर्थ का दृष्टान्त कहते हैं -
जो कोडिए ण जिप्पइ सुहडो संगामएहिं सव्वेहि। सो किं जिप्पड़ इक्किं णरेण संगामए सुहडो।।२२।।
यः कोट्या न जीयते सुभटः संग्रामकैः सर्वेः।
स किं जीयते एकेन नरेण संग्रामे सुभटः ।।२२।। अर्थ – जो कोई सुभट संग्राम में सब ही संग्राम के करनेवालों के साथ करोड़ मनुष्यों को भी सुगमता से जीते वह सुभट एक मनुष्य को क्या न जीते ? अवश्य ही जीते।
भावार्थ - जो जिनमार्ग में प्रवर्ते वह कर्म का नाश करे ही, तो क्या स्वर्ग के रोकनेवाले एक पापकर्म का नाश न करे ? अवश्य ही करे ।।२२।। ___ आगे कहते हैं कि स्वर्ग तो तप से (शुभरागरूपी तप द्वारा) सब ही प्राप्त करते हैं, परन्तु ध्यान के योग से स्वर्ग प्राप्त करते हैं वे उस ध्यान के योग से मोक्ष भी प्राप्त करते हैं -
सगं तवेण सव्वो वि पावए तहिं वि झाणजोएण। जो पावइ सो पावइ परलोए सासयं सोक्खं ।।२३।। स्वर्गं तपसा सर्व: अपि प्राप्नोति किन्तु ध्यानयोगेन।
यः प्राप्नोति सः प्राप्नोति परलोके शाश्वतं सौख्यम् ।।२३।। अर्थ – शुभरागरूपी तप द्वारा स्वर्ग तो सब ही पाते हैं तथापि जो ध्यान के योग से स्वर्ग पाते हैं, वे ही ध्यान के योग से परलोक में शाश्वत सुख को प्राप्त करते हैं।
भावार्थ - कायक्लेशादिक तप तो सब ही मत के धारक करते हैं, वे तपस्वी मंदकषाय के
जो अकेला जीत ले जब कोटिभट संग्राम में। तब एक जन को क्यों न जीते वह सुभट संग्राम में ।।२२।। शुभभाव-तप से स्वर्ग-सुख सब प्राप्त करते लोक में। पाया सो पाया सहजसुख निजध्यान से परलोक में ।।२३।।