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अष्टपाहुड
सम्यक्त्वगुणविशुद्धः भाव: अर्हत: ज्ञातव्यः ।।४१।। अर्थ - ‘भाव अरहंत' सम्यग्दर्शन से तो अपने को तथा सबको सत्तामात्र देखते हैं, इसप्रकार जिनको केवलदर्शन है, ज्ञान से सब द्रव्य-पर्यायों को जानते हैं, इसप्रकार जिनको केवलज्ञान है, जिनको सम्यक्त्व गुण से विशुद्ध क्षायिक सम्यक्त्व पाया जाता है, इसप्रकार अरहंत का भाव जानना।
भावार्थ - अरहतपना घातियाकर्म के नाश से होता है। मोहकर्म के नाश से सम्यक्त्व और कषाय के अभाव से परमवीतरागता सर्वप्रकार निर्मलता होती है, ज्ञानावरण, दर्शनावरण कर्म के नाश से अनंतदर्शन-अनंतज्ञान प्रकट होता है, इनसे सब द्रव्य-पर्यायों को एक समय में प्रत्यक्ष देखते हैं और जानते हैं।
द्रव्य छह हैं, उनमें जीवद्रव्य की संख्या अनंतानंत है, पुद्गलद्रव्य उससे अनंतानंतगुणे हैं, आकाशद्रव्य एक है, वह अनंतानंत प्रदेशी है, इसके मध्य में सब जीव पुद्गल असंख्यात प्रदेश में स्थित हैं, एक धर्मद्रव्य, एक अधर्मद्रव्य - ये दोनों असंख्यातप्रदेशी हैं, इनसे आकाश के लोक-अलोक का विभाग है, उसी लोक में ही कालद्रव्य के असंख्यात कालाणु स्थित हैं। इन सब द्रव्यों के परिणामरूप पर्याय हैं वे एक-एक द्रव्य के अनंतानंत हैं, उनको कालद्रव्य का परिणाम निमित्त है, उसके निमित्त से क्रमरूप होता समयादिक व्यवहारकाल' कहलाता है। इसकी गणना से अतीत, अनागत, वर्तमान द्रव्यों की पर्यायें अनंतानंत हैं, इन सब द्रव्यपर्यायों को अरहंत का दर्शन-ज्ञान एकसमय में देखता और जानता है, इसीलिए अरहंत को सर्वदर्शीसर्वज्ञ कहते हैं।
भावार्थ - इसप्रकार अरहंत का निरूपण चौदह गाथाओं में किया। प्रथम गाथा में नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव, गुण, पर्याय सहित च्यवन, आगति, संपत्ति ये भाव अरहंत को बतलाते हैं। इसका व्याख्यान नामादि कथन में सर्व ही आ गया, उसका संक्षेप भावार्थ लिखते हैं -
गर्भकल्याणक - प्रथम गर्भकल्याणक होता है, गर्भ में आने के छह महीने पहिले इन्द्र का भेजा हुआ कुबेर, जिस राजा की रानी के गर्भ में तीर्थंकर आयेंगे, उसके नगर की शोभा करता है, रत्नमयी सवर्णमयी मन्दिर बनाता है. नगर के कोट, खाई. दरवाजे.सन्दर वन. उपवन की रचना करता है, सुन्दर भेषवाले नर-नारी नगर में बसाता है, नित्य राजमन्दिर पर रत्नों की वर्षा होती रहती है, तीर्थंकर का जीव जब माता के गर्भ में आता है, तब माता को सोलह स्वप्न आते हैं, रुचकवरद्वीप में रहनेवाली देवांगनायें माता की नित्य सेवा करती हैं, ऐसे नौ महीने पूरे होने पर प्रभु