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अष्टपाहुड __ आगे इन पाँच व्रतों की पच्चीस भावना कहते हैं, उनमें से प्रथम अहिंसाव्रत की पाँच भावना कहते हैं -
वयगुत्ती मणगुत्ती इरियासमिदी सुदाणणिक्खेवो। अवलोयभोयणाए अहिंसए भावणा होति ।।३२।। वचोगुप्ति: मनोगुप्ति: ईर्यासमितिः सुदाननिक्षेपः।
अवलोक्य भोजनेन अहिंसाया भावना भवंति ।।३२।। अर्थ – वचनगुप्ति और मनोगुप्ति ऐसे दो तो गुप्तियाँ, ईर्यासमिति, भलेप्रकार कमंडलु आदि का ग्रहण निक्षेप यह आदाननिक्षेपणा समिति और अच्छी तरह देखकर विधिपूर्वक शुद्ध भोजन करना, यह एषणा समिति - इसप्रकार ये पाँच अहिंसा महाव्रत की भावना हैं।
भावार्थ - बारबार उस ही के अभ्यास करने का नाम भावना है सो यहाँ प्रवृत्ति निवृत्ति में हिंसा लगती है, उसका निरन्तर यत्न रखे तब अहिंसाव्रत का पालन हो, इसलिए यहाँ योगों की निवृत्ति करनी तो भलेप्रकार गुप्तिरूप करनी और प्रवृत्ति करनी तो समितिरूप करनी, ऐसे निरन्तर अभ्यास से अहिंसा महाव्रत दृढ़ रहता है, इसी आशय से इनको भावना कहते हैं ।।३२।। आगे सत्य महाव्रत की भावना कहते हैं -
कोहभयहासलोहा मोहा विवरीयभावणा चेव । विदियस्स भावणाए ए पंचेव य तहा होति ।।३३।।
क्रोधभयहास्यलोभमोहा विपरीतभावना: च एव ।
द्वितीयस्य भावना इमा पंचैव च तथा भवंति ।।३३।। अर्थ - क्रोध, भय, हास्य, लोभ और मोह इनसे विपरीत अर्थात् उल्टा इनका अभाव ये द्वितीय व्रत सत्य महाव्रत की भावना हैं।
भावार्थ - असत्य वचन की प्रवृत्ति क्रोध से, भय से, हास्य से, लोभ से और परद्रव्य के मोहरूप मिथ्यात्व से होती है, इनका त्याग हो जाने पर सत्य महाव्रत दृढ़ रहता है।
मनोगुप्ती वचन गुप्ती समिति ईर्या ऐषणा। आदाननिक्षेपण समिति ये हैं अहिंसा भावना ।।३२।। सत्यव्रत की भावनायें क्रोध लोभरु मोह भय । अर हास्य से है रहित होना ज्ञानमय आनन्दमय ।।३३।।