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________________ भवों के अनन्त माता-पिता, पुत्र-पुत्री, बन्धु-बान्धव व मित्र-संबंधी नहीं होंगे। कौन कह सकता है उन अनन्त जीवों में भविष्य के अनन्त सिद्ध शामिल नहीं होंगे ? भूत व भविष्य की बात क्या करें। वे सभी हमारी ही तरह वर्तमान में भी तो अनन्त गुणों के स्वामी भगवान आत्मा ही हैं। उन अनन्त भगवान आत्माओं के प्रति हमारी यह घोर उपेक्षा, हमारा यह घोर प्रमाद; क्या कोई छोटा अपराध है ? वह भी मात्र एक क्षण के स्वाद के लिए। अरे ! यह उन अनन्त भगवान आत्माओं का ही घात नहीं था, यह तो निज भगवान आत्मा का घात था, इस अबंधस्वभावी भगवान आत्मा के लिए अनन्त कर्मबंध का निमित्त व अनन्तकाल तक भवभ्रमण का कारण था; पर मुझे इसकी खबर ही नहीं। क्या-क्या अन्याय व अनीति नहीं की मैंने ? न सही अपने पुत्र के लिए, मित्र के बेटे के लिए ही सही; पर रिश्वत देकर पीएमटी (Pre Medical Test) की परीक्षा में पास करा देना क्या छोटा अपराध था ? रिश्वत देकर समाज व शासनव्यवस्था को तो भ्रष्ट किया ही, पर जिस विद्यार्थी का हक छीनकर अपने मित्र के नाकाबिल पुत्र को दिलाया, उसके प्रति कितना बड़ा अपराध था वह? जिस योग्य छात्र का हक मैंने छीन लिया, उस पर क्या गुजरी होगी ? जाने क्या बन पाया होगा वह? न जाने कुछ बन भी पाया होगा या नहीं; या जीवन भर के लिए एक साधारण आदमी बनकर रह गया होगा, एक साधारण मजदूर; बेचारा मजबूर । न जाने किस अंधेरे घर का दीप प्रज्वलित होते-होते रह गया होगा ? कौन जाने उस घर का अंधेरा उसके बाद कभी मिट भी सका होगा या नहीं। यह मात्र उस छात्र के प्रति ही अपराध नहीं था, यह उसके विवश माता-पिता के प्रति भी कितना बड़ा अन्याय था, जिनकी आँखों का वह तारा होगा, उनकी आशाओं व अरमानों का एकमात्र केन्द्रबिन्दु । कौन अन्तर्द्वन्द/९ जाने उस एक घोड़े पर उन्होंने क्या-क्या दाव पर लगा रखा हो ? हो न हो शायद सर्वस्व ही। मात्र इस आशा में कि यदि एक बार यह डॉक्टर बन जावे, तो जन्म-जन्म के पाप कट जावें, दारिद्र्य मिट जावे ! जब मेरे इस दुष्कृत्य के कारण वह असफल घोषित कर दिया गया होगा, तब उनका क्या हुआ होगा, उन पर क्या गुजरी होगी ? अरे सिर्फ वही क्यों ? क्या उनकी आगामी अनगिनत पीढ़ियाँ जीवन के उजालों से वंचित नहीं कर दी गईं, अन्धकार के गर्त में नहीं धकेल दी गईं ? उद्गमस्थल पर विद्युत का तार काट दिये जाने पर सम्पूर्ण महानगर अंधकार में डूब जाता है। और वह दुष्कृत्य मैंने जिसके लिए किया था, उसने क्या किया? वह तो १० साल में जैसे-तैसे डॉक्टर बनने के बाद अंगरों के निर्यात के कारोबार में लग गया। ___ क्या यह देश व समाज के प्रति मेरी गद्दारी नहीं थी, क्या मैंने अनेकों मरीजों को एक योग्य डॉक्टर की सेवा से वंचित नहीं कर दिया ? जाने वह कितने लोगों की जीवनरक्षा का निमित्त बनता। प्रतिदिन अपने इसीप्रकार के अविचारी कृत्यों द्वारा हम देश व समाज का इतना बड़ा नुकसान कर डालते कि अपना सम्पूर्ण जीवन भी समाजसेवा में झोंककर हम इसकी क्षतिपूर्ति नहीं कर सकते। कभी-कभी तो हम अपने इन्हीं कृत्यों को समाजसेवा मान बैठते हैं और इस सबके बदले समाज से अनेकों अभिनन्दन और न जाने क्या-क्या अपेक्षायें करने लगते हैं। क्या यह अनन्त बंध का कारण नहीं होगा? ___अरे कितने अज्ञ हैं हम! हम स्वयं अपने आपको नहीं जानते; हम स्वयं अपने मनोभावों का विश्लेषण नहीं कर पाते हैं। हम क्या हैं और अपने आपको क्या समझते हैं और स्वयं हमारी निगाहों से ओझल, हमारे अन्दर छुपी हुई हमारी अपनी हीन-वृत्तियाँ किसप्रकार समाज के वातावरण को विषाक्त किया करती हैं, इसकी हमें कल्पना ही नहीं रहती है। इसे कुल की मर्यादा के उल्लघंन का डर कहो या दुस्साहस की कमी; अन्तर्द्वन्द/१०
SR No.008339
Book TitleAntardvand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmatmaprakash Bharilla
PublisherHukamchand Bharilla Charitable Trust Mumbai
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size150 KB
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