________________ ग्रस्त हैं, उनकी तो मजबूरी है, सारा समय व शक्ति भोजन जुटाने मात्र में खपाने की, पर साधन-सम्पन्न लोग यदि भोजन बनाने, सजाने व ग्रहण करने में ही अपना अधिकांश समय व्यतीत कर दें तो फिर दोनों में फर्क ही क्या रहा? दोनों ही प्रकार के लोग रहे तो भोजन के इर्द-गिर्द ही न! भोजन तो जीवन का साधन है, साध्य लक्ष्य नहीं। * सिर्फ क्षणिक तौर पर थोड़ा अच्छा दिखने के लिए अपने जीवन का बहुतायत-बहुमूल्य समय बर्बाद करने का आखिर क्या औचित्य है? * बाहरी सजावट से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है-भोजन की शुद्धता। सीमित मात्रा में दौलत भोगसामग्री उपलब्ध करने में सहायक होती है, पर दौलत की अधिकता फिर उसी भोग सामग्री से विमुखता का निमित्त बन जाती है। * मार्ग मिलना ही सबसे महत्त्वपूर्ण है। यही सबसे बड़े पुरुषार्थ का काम