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________________ • प्रसवकाल पूर्ण हो जाने पर भी प्रसूति न होने से अब सभी का ध्यान इस ओर आकर्षित होने लगा था। • कर्तव्य तो सूझता न था और पूर्वकृत दुष्कृत्यों का स्मरण व उनके सम्भावित परिणामों की दुश्चिन्ता उनका पीछा न छोड़ती थी। • सच्चाई तो यह है कि आत्मकल्याण के लिए तो कुछ किया ही नहीं, बल्कि अनाचार के द्वारा आगे अनन्तकाल तक भवभ्रमण का इन्तजाम और कर लिया......कुछ कैसे नहीं किया ? हाँ, कमाई नहीं की पर माथे पर कर्जा तो कर लिया न ! • कुछ भी तो न बदला था। कल तक अपने अतीत की तथाकथित उपलब्धियों को याद कर मन ही मन गौरवान्वित हुआ करते थे और आज अपने अतीत की भूलों को याद कर मलाल करते रहते हैं ....... । 30 सूत्रात्मक वाक्य • किसी प्रतिमा के सामने खड़े होकर, एक थाली के चावल दूसरी थाली में ट्रांसफर कर देने मात्र का नाम तो पूजन नहीं है। सच्ची आराधना तो सम्पूर्ण समर्पण का भाव है और क्या आज हम धनार्जन के लिए पूर्णत: समर्पित नहीं हैं ? फिर यह लक्ष्मी पूजन नहीं तो और क्या कहा जाए इसे ? • जीवनयापन के साधन जुटाने मात्र में जीवन बीत जाये, खप जावे तो फिर जीवन का अर्थ ही क्या है ? उस जीवन का देश व समाज के लिए क्या योगदान हुआ, स्वयं अपने लिए; सिवाय इसके कि अनन्त कर्मबन्ध करे अनन्तकाल के लिए भवभ्रमण का पुख्ता इन्तजाम हो जावे । • मैं स्वयं भी एक चिन्तनीय विषय व वस्तु हूँ । • क्या दौलत व सुख एक-दूसरे के पर्यायवाची ही हैं। • आवश्यकताएँ मानव को पराश्रित बनाती हैं। जितनी जितनी आवश्यकताएँ बढ़ती जायेंगी, आदमी की विभिन्न साधनों के प्रति आधीनता बढ़ती जायेगी । • हर समय हर साधन की उपलब्धि तो सम्भव नहीं है, तब उस वस्तु के अभावरूप आकुलता व त्रास को टालना असम्भव ही है और इसीलिए आवश्यकताओं की पूर्ति सुखी होने का उपाय नहीं, वरन् सीमित आवश्यकता ही आकुलता रहित जीवन की कुंजी है। • यदि हर व्यक्ति का क्षणिक वैराग्य इसी तरह परवान चढ़ने लगता है तो शायद जगत में वैरागी ही वैरागी दिखाई देते । • अनेकों बार प्रत्येक के मन में स्वयं की रुचि, स्वभाव व विचारधारा से हटकर अनेक तरह के विचार आते हैं व चले जाते हैं; वे अपनी जड़ें नहीं जमा पाते और इसतरह व्यक्ति अपरिवर्तित ही रहता है।
SR No.008339
Book TitleAntardvand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmatmaprakash Bharilla
PublisherHukamchand Bharilla Charitable Trust Mumbai
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size150 KB
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