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आत्मकथ्य
लेखकीय प्रस्तुत तृतीय संस्करण में बीस निबन्ध एवं तीन कहानियाँ हैं। ये गद्य रचनायें ऐसी सरल, सुबोध, सरस और सारगर्भित हैं कि सबकी समझ में तो ये आसानी से आयेंगे ही; जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन भी ला सकते हैं। मिथ्या मान्यता की कंटकाकीर्ण ऊँची-नीची दुःखद पगडंडी पर बढ़ते कदम सच्चे सुख की समतल सड़क की ओर मुड़ सकते हैं।
इन निबन्धों के तैयार होने का प्रसंग ऐसे बना कि मेरे मना करने पर भी जब आयोजकों ने मेरे अभिनन्दन में एक अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित करने की योजना बना ही डाली तो मैंने विशद्ध भाव से उन्हें यह सलाह दी कि यदि यह काम आपको करना ही है तो उक्त ग्रन्थ में ७५ प्रतिशत प्रकाश्य सामग्री तात्विक हो। शेष २५ प्रतिशत में भी मेरे व्यक्तित्व की चर्चा न कर मेरे साहित्य के समीक्षात्मक लेख ही हों। व्यक्तित्व की बातें तो आटे में नमक बराबर ही हों। व्यक्तित्व की बातें भी वे ही हों, जिनसे पाठकों को अपने व्यक्तित्व विकास की और सदाचारी जीवन जीने की प्रेरणा मिले।
आयोजकों और सम्पादकों ने मेरी यह सलाह मान तो ली; परन्तु तात्विक सामग्री के संकलन का काम करने को मुझे ही बाध्य कर दिया। साथ ही इस बात पर जोर डाला कि आप अपने पुराने काल कवलित उन आध्यात्मिक लेखों का संकलन करें जो अब तक पुस्तक के रूप में नहीं छपें हों।
तदनुसार मैंने २५ वर्ष पूर्व से लेकर अद्यावधि तक के उपयोगी लेखों को परिमार्जित करने का काम प्रारंभ किया ही था कि एक दिन पण्डित पूनमचन्दजी छाबड़ा ने सहजभाव से पूछ लिया - “क्या लिख रहे हो?" मैंने उनसे बिना कुछ कहे उन्हें एक-दो लेख पढ़ने को दे दिए; उन्हें वे लेख बहुत अच्छे लगे। फिर तो मैं एक-एक लेख तैयार करता रहा और वे उन्हें मनोयोगपूर्वक पढ़ते रहे और प्रत्येक निबन्ध की प्रशंसा कर मेरा उत्साह बढ़ाते रहे।
इतना ही नहीं, एक दिन तो वे इतने उत्साहित हो गये कि - मुझ से बोले - पण्डितजी! इसे तो आप एक पुस्तकरूप में जल्दी छपाओ। मेरी भावना हो रही है कि मैं इस पुस्तक की हजार प्रतियाँ अपनी ओर से निःशुल्क वितरित करूँ।
__फलस्वरूप यह पुस्तक तैयार हो गई। आशा है पाठक अन्य कृतियों की भाँति इसे भी अपनायेंगे।
- रतनचन्द भारिल्ल
हमने ऐसे क्या पाप किए, जिसकारण मर-मर कर जिए; आसुओं के घुट पिये। जन्तर-मन्तर गंडा; तावीजदेवी देवताओं के पूजापाठ, सुख पाने के लिए सब कुछ तो किए पर, अबतक जो भी काम किए वे सब व्यर्थ सिद्ध हुए।। हमने ऐसे क्या. ।।
-- -- -- रागी-द्वेषी-अल्पज्ञ देवी-देवताओं को - पूजकर, तुमने खोदे मौत के कुए; टोना-टोटका जन्तर-मन्तर करके - मिथ्या भाव ही पुष्ट किए; अबतक इन्हें छोड़ा नहीं, मिथ्यामार्ग से मुँह मोड़ा नहीं; बस, इसी कारण फेल हुए, फिर भी हमसे पूछते हो; हमने ऐसे क्या पाप किए
-- -- -- सही समाधान पाने को पढिए, “देवदर्शन क्यों ?" "श्रावक के षट् आवश्यक क्या ?" और पढिए "आध्यात्मिक पंचसकार" "सर्वज्ञता और पुरुषार्थ इन्ही से प्राप्त होगा आत्मार्थ
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