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________________ अबतक ये कुछ नहीं किए इसी कारण मर-मर कर जिए।। हमने ऐसे क्या. ।। -- -- सन्मार्ग पर आने के लिए। और पढिए - “समाधि-साधना और सिद्धि” प्रगट होगी आत्मा की प्रसिद्धि “धर्म परिभाषा नहीं, प्रयोग है" धर्म परम्परा नहीं, स्व-परीक्षित साधना है, आत्मा की आराधना है। धर्म है जिन सिद्धान्तों का जीवन में प्रयोग उसी से होता है स्वभावसन्मुख उपयोग अबतक ये कुछ भी नहीं किए इसी कारण हम सुख पाने में असफल हुए।। हमने ऐसे क्या. ।। कहाँ क्या? १. ऐसे क्या पाप किए? (कहानी) २. नित्य देवदर्शन क्यों? ३. श्रावक के षट्आवश्यक ४. पुण्य और धर्म में मौलिक अन्तर ५. आध्यात्मिक पंच सकार : सुखी होने का सूत्र ६. सर्वज्ञता क्रमबद्धपर्याय और पुरुषार्थ ७. भक्तामर स्तोत्र : निष्काम भक्ति स्तोत्र ८. जिनागम के आलोक में विश्व की कारण कार्य व्यवस्था ९. समाधि-साधना और सिद्धि १०. पुरुषार्थसिद्ध्युपाय और आचार्य अमृतचंद ११. धर्म परिभाषा नहीं प्रयोग है १२. भारतीय संस्कृति के विकास में जैनधर्म का योगदान १३. पंचकल्याणक : पाषाण से परमात्मा बनने की प्रक्रिया १४. परिग्रह को पाप मानने वालों के पास अधिक परिग्रह क्यों? १५. जैन साधु दिगम्बर क्यों होते हैं? १६. भगवान महावीर के विश्वव्यापी संदेश १७. समयसार : संक्षिप्त सार १८. क्षत्रचूड़ामणि नीतियों और वैराग्य भावों से भरपूर कृति १९. सोलहवीं सदी में एक क्रांतिकारी संत का उदय २०. बीसवीं सदी का सर्वाधिक चर्चित व्यक्तित्व २१. जैन अध्यात्म के सर्वश्रेष्ठ हिन्दी कवि : बनारसीदास २२. मान से मुक्ति की ओर (कहानी) २३. जान रहा हूँ देख रहा हूँ (कहानी) ११६ १२२ १३९ प्रस्तुत हैं ये इक्कीस निबन्ध, इनमें है सच्चा सुख पाने का प्रबन्ध 'पर से सुख का नहीं कुछ भी सबन्ध' अबतक यह जाना नहीं - इसकारण हैं भव में भटके हुए संसार के राग-रंग में अटके हुए फिर भी बारम्बार वही होता है प्रश्न, हम मर-मर कर क्यों जिए? हमने ऐसे क्या पाप किए ? || - रतनचन्द भारिल्ल 0 0606 0 १८० 0 0 0 0
SR No.008338
Book TitleAise Kya Pap Kiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size489 KB
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