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________________ ५,००० ३,००० प्रथम संस्करण : (१५ अक्तूबर, २००४) द्वितीय संस्करण : (२२ जुलाई, २००५) वीर शासन जयन्ती तृतीय संस्करण : (२६ जनवरी, २००६) गणतंत्र दिवस जैनपथ प्रदर्शक (सम्पादकीय) योग ३,५०० १४,५०० विक्रय मूल्य : १५ रुपए मात्र प्रकाशकीय : तृतीय संस्करण हमने कल्पना भी नहीं की थी कि इस कृति को इतने जल्दी पुनः-पुनः प्रकाशित करना पड़ेगा। आपको यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि प्रस्तुत कृति का पाँच हजार का प्रथम संस्करण मात्र पाँच माह में एवं ३ हजार का द्वितीय संस्करण छह माह में ही समाप्त हो गया है, फिर भी निरन्तर माँग बनी हुई है। अतः यह तृतीय संस्करण प्रकाशित करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता है। इस संस्करण के अन्त में लेखक द्वारा लिखित दो नवीन मौलिक कहानियाँ भी जोड़ दी गई हैं। कृति की उत्कृष्टता एवं लोकप्रियता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है। ऐसी उत्कृष्ट कृति के लिए हम लेखक के प्रति पुनः-पुनः कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। इस संस्करण में कीमत करनेवालों को धन्यवाद। - ब्र. यशपाल जैन, एम.ए. प्रकाशन मंत्री, पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर प्रकाशकीय : प्रथम संस्करण यह लिखते हुए हम गौरवान्वित हैं कि लोकप्रिय कृतियों के ख्यातिप्राप्त लेखक पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल अपने दायित्त्वों का भलीभाँति निर्वाह करते हए सत्साहित्य के सुजन, सम्पादन एवं अनुवाद कार्य में भी अग्रगण्य हैं। हिन्दी के अध्यात्मरसिक पाठकों की दृष्टि से आपका महत्त्वपूर्ण योगदान है। आपके द्वारा पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी के अनेक ग्रन्थों पर गुजराती भाषा में हए प्रवचनों का हिन्दी अनुवाद हआ है जो अबतक पंद्रह पस्तकों के रूप में लगभग ६ हजार पृष्ठों में अत्यन्त सरल-सुबोध, सीधी-सादी, सरल साहित्यिक हिन्दी भाषा में पाठकों तक पहुँच चुका है तथा पाँच पुस्तकों का सम्पादन आपने किया है। इस श्रमसाध्य कार्य के सिवाय आपने २१ ऐसी मौलिक आध्यात्मिक लोकप्रिय पुस्तकें लिखी हैं, जिन्हें बहुसंख्य पाठकों ने न केवल पढ़ा और सराहा ही है; बल्कि घर-घर और जन-जन तक पहुँचाने में भी तन-मन-धन से भरपर योगदान दिया है। तभी तो सभी कृतियों के हिन्दी के अतिरिक्त गुजराती, मराठी, कन्नड़ सहित आठ-आठ, दस-दस संस्करण प्रकाशित होकर बिक्री के रिकार्ड तोड़ चुके हैं। हमें आशा है लेखक की अन्य कृतियों की भाँति यह कृति भी पाठकों को पसन्द आयेगी। प्रस्तुत कृति में लेखक ने अध्यात्म और आगम के आलोक में २१ निबन्धों के रूप में जैनदर्शन के मौलिक सिद्धान्त प्रतिपादित किये हैं। यदि व्यक्ति इन सिद्धान्तों को भलिभाँति समझ ले और उन पर बारम्बार चिन्तन-मन्थन करे तो उसका जीवन स्वावलम्बी हो सकता है, सुखी हो सकता है। ___ इतनी सुन्दर-सुन्दर कृतियाँ लिखकर लेखक ने जो अभिनन्दनीय कार्य किया है, उसके लिए जितना भी बहुमान किया जाय, कम ही होगा। इस कृति की कीमत कम करने में जिन महानुभावों का आर्थिक योगदान मिला है, हम उनके आभारी हैं। पुस्तक की प्रकाशन व्यवस्था एवं साफ सुथरे आकर्षक मुद्रण के लिए अखिल बंसल एवं प्रिन्ट ओ लैण्ड धन्यवादाह हैं। दिनांक : १५ अक्तूबर २००४ -ब्र. यशपाल जैन प्रकाशन मंत्री, पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर मुद्रक: प्रिन्ट 'ओ' लैण्ड बाईस गोदाम, जयपुर (2)
SR No.008338
Book TitleAise Kya Pap Kiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size489 KB
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