________________
आध्यात्मिक पंच सकार : सुखी होने का सूत्र
ऐसे क्या पाप किए ! उत्तर :- समस्त संयोग परद्रव्य हैं और परद्रव्यों में न सुख हैं; न दुःख हैं; अतः संयोग न सुखदायक है, न दुःखदायक। जिसके पास जो होता है, वही तो दे सकता है। जब संयोगों में सुख-दुःख हैं ही नहीं, तो वे सुख-दुःख देंगे कहाँ से? अतः यह निश्चय हुआ कि संयोग न तो सुखदायक हैं, न दुःखदायक।
प्रश्न :- संयोग हेय है, ज्ञेय है या उपादेय?
उत्तर :- जो दुःखदायक होता है वह हेय होता है, जो सुखदायक होता है उपादेय होता है, जब यह निर्णय पहले प्रश्न में ही हो चुका है कि संयोग सुख व दुःखदायक नहीं है तो यह स्पष्ट ही है कि सभी संयोग मात्र ज्ञेय हैं, हेय-उपादेय नहीं।
प्रश्न :- संयोग सादि-सान्त हैं या अनादि-अनन्त?
उत्तर :- सभी परद्रव्य अनादिकाल से हैं और अनन्तकाल तक रहेंगे, इस दृष्टि से संयोग अनादि अनन्त ही हैं। अतः उन्हें नाश करने या मिटाने का प्रश्न ही नहीं उठता। लोक के द्रव्य तो लोक में ही रहेंगे। हमें उनसे कुछ हानि-लाभ ही नहीं है, तो फिर हमें उनसे क्या लेना-देना है। जिन परद्रव्यों का संयोग जीव से हुआ है, वे सादि-सान्त है, अतः उन्हें निरर्थक जानकर छोड़ा जा सकता है, अतः उन्हें छोड देना है।
प्रश्न :- संयोग सात तत्त्वों में कौन सा तत्व है? ।
उत्तर :- अजीव तत्त्व है। अचेतन संयोग तो अजीव हैं ही, अन्य जीव भी मेरी अपेक्षा अजीव ही हैं; क्योंकि अन्य जीव के ज्ञान व सुख से हम ज्ञानी व सुखी नहीं हो सकते । जैसे दूसरे की आँख से हम देख नहीं सकते, उसीतरह अन्य के ज्ञान से जान नहीं सकते।
प्रश्न :- अचेतन संयोगों में सुख गुण नहीं है, परन्तु चेतन संयोगों में तो सुख गुण है न? फिर उन्हें सुखदायक क्यों नहीं कहा?
उत्तर :- (१) यद्यपि चेतन संयोगों में जो सुख गुण है, परन्तु प्रथम तो उसका हस्तांतरण नहीं हो सकता (२) दूसरे, उसके पास आवश्यकता से
अधिक नहीं है, जो दूसरों को दे सके। तथा (३) अपने पास भी वह सुख किसी से कम नहीं है, मात्र पहचानने की देर है। अतः चेतन संयोगों से सुख की अपेक्षा ही नहीं है।
(२) संयोगी भाव के साथ भी उक्त सुखदायक, दुःखदायक आदि पाँच बोल घटित करके उनकी हेयोपादेयता पर विचार करते हैं।
प्रश्न :- संयोगीभाव हेय हैं या उपादेय? उत्तर :- हेय हैं, क्योंकि दुःखदायक हैं। प्रश्न :- क्या संयोगीभाव भी संयोगों की तरह अनादि-अनन्त हैं?
उत्तर :- नहीं, ये तो सादि-सान्त हैं, क्योंकि ये परिणमनशील पर्यायें हैं, अभी पैदा हुए हैं और एक क्षण बाद समाप्त होने वाले हैं। हाँ, अनादि सन्तान क्रम से चले आ रहे, इस अपेक्षा से इन्हें अनादि-सान्त भी कह सकते हैं; परन्तु फिर भी चिन्ता की बात नहीं है, क्योंकि जो सादि-सान्त या अनादि-सान्त हैं, वे सब अगले क्षण स्वयं ही नष्ट होनेवाले हैं।
प्रश्न :- पाँच भावों में संयोगीभाव कौनसा भाव है? उत्तर :- औदयिक भाव हैं, कर्माधीन है, विकारी है। प्रश्न :- सात तत्त्वों में संयोगीभाव कौन से तत्त्व हैं? उत्तर :- आस्रव-बन्ध तत्त्व हैं, जो कि दुःख के कारण हैं।
(३) अब ‘स्वभाव' नामक बोल पर-सुखदायक, दुःखदायक आदि पाँचों बोलों को घटित करते हैं।
प्रश्न :- स्वभाव सुखदायक हैं या दुःखदायक?
उत्तर :- वैसे तो स्वभाव सदा सुखस्वरूप है, परन्तु उसे सुखदायक भी कहा जा सकता है; क्योंकि स्वभाव के आश्रय से ही पूर्ण सुख की प्राप्ति पर्याय में प्रगट होती है।
प्रश्न :- स्वभाव हेय है या उपादेय? उत्तर :- उपादेय, क्योंकि स्वभाव के आश्रय से सुख प्राप्त होता है।
(27)