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________________ 34 अहिंसा : महावीर की दृष्टि में महावीर वन्दना अहिंसा : महावीर की दृष्टि में परमरसायन का सेवन करो। जब हम इस परमामृत पान की पावन प्रेरणा देते हैं तो कुछ लोग कहने लगते हैं - "आपकी बातें तो बहुत अच्छी हैं, पर अकेले हमारे अहिंसक हो जाने से क्या होनेवाला है, क्योंकि अकेला चना तो भाड़ फोड़ नहीं सकता। अतः पहले सारी दुनिया को यह अहिंसा समझाओ, स्वीकार कराओ; बाद में हम भी स्वीकार कर लेंगे।" हमारा उनसे कहना यह है कि भाई ! अहिंसा तो अमृत है; जो इस अमृत के प्याले को पियेगा, वह अमर होगा, सुखी होगा, शान्त होगा। ___भाई ! इस पावन अहिंसा को यदि व्यक्ति अपनायेगा तो व्यक्ति सुखी होगा, परिवार अपनायेगा तो परिवार सुखी होगा, समाज अपनायेगा तो समाज सुखी होगा और देश अपनायेगा तो देश सुखी होगा। अतः दूसरों पर टालने की अपेक्षा 'भले काम को अपने घर से ही आरम्भ कर देना चाहिए' की लोकोक्ति के अनुसार हमें अहिंसा को सच्चे दिल से समझने एवं जीवन में अपनाने का कार्य स्वयं से ही आरम्भ कर देना चाहिए। अधिक क्या कहें? भाई ! सभी प्राणी भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित इस अहिंसा सिद्धान्त को गहराई से समझें; मात्र समझें ही नहीं, जीवन में अपनायें और सहज सुख-शान्ति को प्राप्त करें - इस पावन भावना से विराम लेता हूँ। __हिंसा और अहिंसा निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि राग-द्वेष-मोह भावों की उत्पत्ति होना ही हिंसा है और उन्हें धर्म मानना महाहिंसा है तथा रागादि भावों की उत्पत्ति नहीं होना ही परम-अहिंसा है और रागादि भावों को धर्म नहीं मानना ही अहिंसा के सम्बन्ध में सच्ची समझ है। - यही जिनागम का सार है। - तीर्थंकर महावीर और उनका सर्वोदय तीर्थ, पृष्ठ 193 जो मोह माया मान मत्सर, मदन मर्दन वीर हैं। जो विपुल विघ्नों बीच में भी, ध्यान धारण धीर हैं।। जो तरण-तारण भव-निवारण, भव जलधि के तीर हैं। वे वंदनीय जिनेश तीर्थंकर, स्वयं महावीर हैं / / जो राग-द्वेष विकार वर्जित, लीन आतम ध्यान में / जिनके विराट विशाल निर्मल, अचल केवलज्ञान में / / युगपद् विशद सकलार्थ झलकें, ध्वनित हों व्याख्यान में। वे वर्द्धमान महान जिन, विचरें हमारे ध्यान में / / जिनका परम पावन चरित, जलनिधि समान अपार है। जिनके गुणों के कथन में, गणधर न पावे पार है / / बस वीतराग-विज्ञान ही, जिनके कथन का सार है। उन सर्वदर्शी सन्मती को, वंदना शत बार है / / जिनके विमल उपदेश में, सबके उदय की बात है। समभाव समताभाव जिनका, जगत में विख्यात है।। जिसने बताया जगत को, प्रत्येक कण स्वाधीन है। कर्त्ता न धर्ता कोई है, अणु-अणु स्वयं में लीन है।। आतम बने परमात्मा हो, शान्ति सारे देश में / है देशना सर्वोदयी, महावीर के सन्देश में / / - डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल
SR No.008337
Book TitleAhimsa Mahavira ki Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size106 KB
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