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आध्यात्मिक भजन संग्रह
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न हमारा, झूठा है जग का ब्योहारा.......
• हमारो कारज कैसें होय....• हमारो कारज ऐसे होय .....
• हमारे ये दिन यों ही गये जी......
• कब हौं मुनिवरको व्रत धरिहौं..... कहत सुगुरु करि सुहित भविकजन !..... • गुरु समान दाता नहिं कोई....
• धनि धनि ते मुनि गिरिवनवासी......
• भाई धनि मुनि ध्यान लगायके खरे हैं.. • यारी कीजै
साधो नाल..... • सोहां दीव (शोभा देवें) साधु तेरी बातड़ियाँ.....
• गौतम स्वामीजी मोहि वानी तनक सुनाई .....
• जिनवानी प्रानी ! जान लै रे.......
• वे प्राणी! सुज्ञानी, जिन जानी जिनवानी.....मैं न जान्यो री ! जीव ऐसी करैगोरे जिय! क्रोध काहे करे.......
• सबसों छिमा छिमा कर जीव !.....
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• करौं आरती वर्द्धमानकी। पावापुर निरवान आन की
• मंगल आरती आतमराम। तनमंदिर मन उत्तम ठान........
• आरति कीजै श्रीमुनिराजकी, अधमउधारन आतमकाजकी.......
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• जियको लोभ महा दुखदाई, जाकी शोभा (?).....• गहु सन्तोष सदा मन रे ! जा सम और नहीं धन रे...• साधो ! छांडो विषय विकारी। जातैं तोहि महा दुखकारी.......
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• वे साधौं जन गाई, कर करुना सुखदाई....• कर्मनिको पेलै, ज्ञान दशामें खेलै.. • खेलौंगी होरी, आये चेतनराय... • चेतन खेलै होरी.... • नगर में होरी हो रही हो.पिया बिन कैसे खेली होरी...... • भली भई यह होरी आई, आये चेतनराय.....• परमगुरु बरसत ज्ञान झरी.....• री ! मेरे घट ज्ञान घनागम छायो...... सुरनरसुखदाई, गिरनार चल
• कहे सीताजी सुनो रामचन्द्र
भाई..... • आरति श्रीजिनराज तिहारी, करमदलन संतन हितकारी....
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(७)
पण्डित द्यानतरायजी
कृत भजन
१. आतम अनुभव कीजै हो जनम जरा अरु मरन नाशकै, अनंतकाल लौं जीजै हो ।। आतम. ।। देव धरम गुरु की सरधा करि, कुगुरु आदि तज दीजै हो।
छौं र नव तत्त्व परखकै, चेतन सार गहीजै हो । आतम. ।। १ ।। दरब करम नो करम भिन्न करि, सूक्ष्मदृष्टि धरीजै हो । भाव करमतैं भिन्न जानिके, बुधि विलास न करीजै हो ।। आतम. ।। २ ।। आप आप जानै सो अनुभव, 'द्यानत' शिवका दीजै हो ।
और उपाय वन्यो नहिं वनि है, करै सो दक्ष कहीजै हो ।। आतम. ।। ३ ।।
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२. आतम अनुभव सार हो, अब जिय सार हो, प्राणी ...... विषय भोगफणिने तोहि काट्यो, मोह लहर चढ़ी भार हो । आतम. ।। १ ।। याको मंत्र ज्ञान है भाई, जप तप लहरिउतार हो ।। आतम. ।। २ ।। जनमजरामृत रोग महा ये, तैं दुख सह्यो अपार हो ।। आतम. ।। ३ ।। 'द्यानत' अनुभव-औषध पीके, अमर होय भव पार हो ।। आतम. ।।४ ।। ३. आतम काज सँवारिये, तजि विषय किलोलैं तुम तो चतुर सुजान हो, क्यों करत अलोलैं ।। आतम. ।। सुख दुख आपद सम्पदा, ये कर्म झकोलैं । तुम तो रूप अनूप हो, चैतन्य अमोलैं ।। आतम. ।। १ ।। तन धनादि अपने कहो, यह नहिं तुम तोलेँ ।
तुम राजा तिहुँ लोकके, ये जात निठोलैं ।। आतम. ।। २ ।। चेत चेत 'द्यानत' अबै, इमि सद्गुरु बोलें।
आतम निज पर - पर लखौ, अरु बात ढकोलैं ।। आतम. ।। ३ ।।