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________________ आध्यात्मिक भजन संग्रह ४. आतम जान रे जान रे जान ......... जीवनकी इच्छा करै, कबहुँ न मांगै काल । (प्राणी!) सोई जान्यो जीव है, सुख चाहै दुख टाल ।।आतम. ।।१।। नैन बैनमें कौन है, कौन सुनत है बात । (प्राणी!) देखत क्यों नहिं आपमें, जाकी चेतन जात ।।आतम. ।।२।। बाहिर ढूंदें दूर है, अंतर निपट नजीक । (प्राणी!) ढूंढनवाला कौन है, सोई जानो ठीक ।।आतम. ।।३।। तीन भुवनमें देखिया, आतम सम नहिं कोय। (प्राणी!) 'द्यानत' जे अनुभव करें, तिनकौं शिवसुख होय ।।आतम. ।।४।। ५. आतम जाना, मैं जाना ज्ञानसरूप ......... पुद्गल धर्म अधर्म गगन जम, सब जड़ मैं चिद्रूप ।।आतम. ।।१।। दरब भाव नोकर्म नियारे, न्यारो आप अनूप ।।आतम. ।।२।। 'द्यानत' पर-परनति कब बिनसै, तब सुख विलसै भूप ।।आतम. ।।३।। ६. आतम जानो रे भाई! ......... जैसी उज्जल आरसी रे, तैसी आतम जोत । काया-करमनसों जुदी रे, सबको करै उदोत । आतम. ।।१।। शयन दशा जागृत दशा रे, दोनों विकलपरूप। निरविकलप शुद्धातमा रे, चिदानंद चिद्रूप ।।आतम. ।।२।। तन वचसेती भिन्न कर रे, मनसों निज लौं लाय। आप आप जब अनुभवै रे, तहाँ न मन वच काय ।।आतम.।।३।। छहौं दरब नव तत्त्व” रे, न्यारो आतमराम । 'द्यानत' जे अनुभव करें रे, ते पावै शिवधाम ।।आतम. ।।४।। ७. आतम महबूब यार, आतम महबूब ......... देखा हमने निहार, और कुछ न खूब ।।आतम. ।। पंचिन्द्रीमाहिं रहै, पाचों तें भिन्न । बादल में भानु तेज, नहीं खेद खिन्न ।।आतम. ।।१।। पण्डित द्यानतरायजी कृत भजन तनमें है तजै नाहिं, चेतनता सोय । लाल कीच बीच पर्यो, कीचसा न होय ।।आतम. ।।२।। जामें हैं गुन अनन्त, गुनमें है आप । दीवे में जोत जोत में है दीवा व्याप ।।आतम. ।। ३ ।। करमोंके पास वसै, करमोंसे दूर । कमल वारि माहिं लसै, वारि माहिं जूर ।।आतम. ।।४ ।। सुखी दुखी होत नाहिं, सुख दुखकेमाहिं । दरपनमें धूप छाहिं, धाम शीत नाहिं ।।आतम. ।।५।। जगके व्योहाररूप, जगसों निरलेप । अंबरमें गोद धर्यो, व्योमको न चेप।।आतम. ।।६।। भाजनमें नीर भर्यो, थिरमें मुख पेख। 'द्यानत' मन के विकार, टार आप देख । आतम. |७|| ८. आतमरूप अनूपम है, घटमाहिं विराजै हो जाके सुमरन जापसों, भव भव दुख भाजै हो।।आतम. ।। केवल दरसन ज्ञानमैं, थिरतापद छाजै हो। उपमाको तिहुँ लोकमें, कोऊ वस्तु न राजै हो । आतम. ।।१।। सहै परीषह भार जो, जु महाव्रत साजै हो। ज्ञान बिना शिव ना लहै, बहुकर्म उपाजै हो । आतम. ।।२।। तिहूँ लोक तिहुँ कालमें, नहिं और इलाजै हो। 'द्यानत' ताकों जानिये, निज स्वारथकाजै हो ।।आतम. ।।३।। ९. आपा प्रभु जाना मैं जाना ......... परमेसुर यह मैं इस सेवक, ऐसो भर्म पलाना।।आपा. ।। जो परमेसुर सो मम मूरति, जो मम सो भगवाना। मरमी होय सोइ तो जाने, जानै नाहीं आना ।।आपा. ।।१।। जाको ध्यान धरत हैं मुनिगन, पावत हैं निरवाना। __ अर्हत सिद्ध सूरि गुरु मुनिपद, आतमरूप बखाना ।।आपा. ।।२ ।। sa kabata (८)
SR No.008336
Book TitleAdhyatmik Bhajan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size392 KB
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