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________________ ४३ आध्यात्मिक भजन संग्रह सोऽहं ध्याय हो.....बीतत ये दिन नीके, हमको..... भजो आतमदेव, रे जिय! भजो आतमदेव, लहो... भवि कीजे हो आतमसँभार, राग दोष परिनाम डार... भ्रम्योजी भ्रम्यो, संसार महावन, सुख ..... भाई! अब मैं ऐसा जाना..... भाई कौन कहै घर मेरा..... भाई! ब्रह्मज्ञान नहिं जाना रे.... • भाई! ज्ञान बिना दुख पाया रे भाई! ज्ञानी सोई कहिये...... भैया! सो आतम जानो रे!....... मगन रहु रे! शुद्धातम में मगन रहु रे... मन! मेरे राग भाव निवार.. २८ मैं निज आतम कब ध्याऊँगा...... रे भाई! मोह महा दुखदाता... • लाग रह्यो मन चेतनसों जी.....लागा आतमसों नेहरा.... २९ वे परमादी! तैं आतमराम न जान्यो. • सब जगको प्यारा, चेतनरूप निहारा..... सुन चेतन इक बात.... ३० सुनो! जैनी लोगो, ज्ञानको पंथ कठिन है..... सो ज्ञाता मेरे मन ३१ माना, जिन निज-निज पर पर जाना • श्रीजिनधर्म सदा जयवन्त.... शुद्ध स्वरूप को वंदना हमारी... हम लागे आतमरामसों..... ३२ हम तो कबहुँ न निज घर आये.... हो भैया मोरे! कहु कैसे सुख होय.. वे कोई निपट अनारी, देख्या आतमराम..... ज्ञाता सोई सच्चा ३३ वे, जिन आतम अच्चा.... ज्ञान सरोवर सोई हो भविजन.... • ज्ञान ज्ञेयमाहि नाहि, ज्ञेय हून ज्ञानमाहि.... ज्ञानी ऐसो ज्ञान विचारै... ज्ञानी ऐसो ज्ञान विचारै.... • अरहंत सुमर मन बावरे...... ए मान ये मन कीजिये भज प्रभु तज सब बात हो..... चौबीसौं । को वंदना हमारी.... जिनके भजन में मगन रहु रे!..... जिन जपि जिन जपि, जिन जपि जीयरा...... जिन नाम सुमर मन! बावरे! कहा इत उत भटकै....... जिनरायके पाय सदा शरनं..... जिनवरमूरत तेरी, शोभा कहिय ३७ न जाय..... तू ही मेरा साहिब सच्चा सांई..... तेरी भगति बिना धिक है जीवना..... मानुष जनम सफल भयो आज..... • मैं नूं भावैजी प्रभु चेतना, मैं नूं भावैजी... प्रभु! तुम नैनन-गोचर ३८ himple Mare Ho पण्डित द्यानतरायजी भजन अनुक्रमणिका नाही.... प्रभु तुम सुमरन ही में तारे.... प्रभु तेरी महिमा किहि मुख गावै... रे मन! भज भज दीनदयाल..... वीतराग नाम सुमर, वीतराग नाम...... हम आये हैं जिनभूप! तेरे दरसन को..... अब समझ कही..... आरसी देखत मन आर-सी लागी....... काहेको सोचत अति भारी, रे मन!..... कौन काम अब मैंने कीनों, लीनों सुर अवतार हो.... गलतानमता कब आवैगा .... चाहत है सुख पै न गाहत है धर्म जीव..... जीव! तैं मूढ़पना कित पायो...... झूठा सपना यह संसार.... त्यागो त्यागो मिथ्यातम, दूजो नहीं जाकी सम.... तू तो समझ समझ रे!...... तेरो संजम बिन रे, नरभव निरफल जाय.... • दियँ दान महा सुख पावै..... दुरगति गमन निवारिये, घर आव सयाने नाह हो.....धिक! धिक! जीवन समकित बिना... नहिं ऐसो जनम बारंबार.... निज जतन करो गुन-रतननिको, पंचेन्द्रीविषय.... परमाथ पंथ सदा पकरौ.... प्राणी लाल! छांडो मन चपलाई.. . प्राणी लाल! धरम अगाऊ धारौ..... भाई! कहा देख गरवाना रे.. भाई काया तेरी दुखकी ढेरी..... भाई! ज्ञानका राह दुहेला रे.... भाई! ज्ञानका राह सुहेला रे....... मानों मानों जी चेतन यह...... मिथ्या यह संसार है, झूठा यह संसार है रे...... मेरी मेरी करत जनम सब बीता... मेरे मन कब द्वै है बैराग.... • मोहि कब ऐसा दिन आय है ....ये दिन आछे लहे जी लहे जी.. रे जिय! जनम लाहो लेह..... विपति में धर धीर, रे नर! विपति में धर धीर....... समझत क्यों नहिं वानी, अज्ञानी जन.......... संसार में साता नाहीं वे............ . सोग न कीजे बावरे! मरें पीतम लोग..... हम न किसी के कोई ४४ ४५ ४६ ४७ ४८ sa kabata
SR No.008336
Book TitleAdhyatmik Bhajan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size392 KB
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