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इस संग्रह के प्रकाशन में श्री सौभाग्यमलजी ने अथक परिश्रम किया है। उनके सम्पादन ने कृति को महत्वपूर्ण बना दिया है, इसके लिए ट्रस्ट उनका हृदय से आभार मानता है। प्राचीन कवियों का साहित्य उपलब्ध कराने में श्री
अनुक्रमणिका विनयचन्दजी पापड़ीवाल का सराहनीय सहयोग रहा है। आकर्षक कलेवर में मुद्रण करने का श्रेय प्रकाशन विभाग के मैनेजर श्री
१. पण्डित द्यानतरायजी कृत भजन ९-५८ अखिल बंसल को जाता है इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। पुस्तक को अल्प
आतम अनुभव कीजै हो... • आतम अनुभवसार हो, अब जिय १३ मूल्य में उपलब्ध कराने का श्रेय दानदातारों को जाता है अतः ट्रस्ट उनको
सार हो प्राणी..... आतम काज सँवारिये, तजि विषय किलोलैं भी धन्यवाद देता है।
आतम जान रे जान रे जान... • आतम जाना, मैं जाना ज्ञानसरूप... १४ आप सभी इस कृति से लाभान्वित हों इसी भावना के साथ -
आतम जानो रे भाई!...... आतम महबूब यार, आतम महबूब... १५ - ब्र. यशपाल जैन, एम.ए.
• आतमरूप अनूपम है, घटमाहिं विराजै हो...
• आपा प्रभू जाना मैं जाना.... प्रकाशन मंत्री, पं. टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर
आतमरूप सुहावना, कोई जानै रे भाई । जाके जानत पाइये,
त्रिभुवन ठुकराई....... . आतमज्ञान लखें सुख होइ... कहाँ/क्या?
इस जीवको, यों समझाऊं री!......
ए मेरे मीत! निचीत कहा सोवै...... कर कर आतमहित १. पण्डित द्यानतरायजी कृत भजन ९-५८
रे प्रानी.... • कर रे! कर रे! कर रे!, तू आतम हित कर रे..... २. पण्डित भूधरदासजी कृत भजन ५९-७७
• कर मन! निज-आतम-चिंतौन.......
कारज एक ब्रह्महीसेती.... . घटमें परमातम ध्याइये हो, परम धरम १८ ३. पण्डित बुधजनजी कृत भजन ७८-८७
धनहेत...चेतनजी! तुम जोरत हो धन, सो धन चलत नहीं तुम लार। ४. पण्डित दौलतरामजी कृत भजन ८८-१२९
चेतन! तुम चेतो भाई, तीन जगत के नाथ.. • चेतन प्राणी
चेतिये हो... चेतन! मान ले बात हमारी.... ५. पण्डित भागचन्दजी कृत भजन १३०-१५२
जगतमें सम्यक उत्तम भाई.... जानत क्यों नहिं रे, हे नर ६. श्री सौभाग्यमलजी कृत भजन १५३-१७१
आतमज्ञानी..... • जानो धन्य सो धन्य सो धीर वीरा.... (अजमेर निवासी)
जो तैं आतमहित नहिं कीना..... • तुमको कैसे सुख द्वै मीत!..... २१ ७. विभिन्न कवियों के भजन
१७२-२२३
• तुम चेतन हो....तुम ज्ञानविभव फूली बसन्त, यह मन मधुकर...
देखे सुखी सम्यक्वान.... • देखो भाई! आतमराम विराजै.... २२
. निरविकलप जोति प्रकाश रही...... पायो जी सुख आतम लखकै.. Aananyidaie naye nack pain प्राणी! आतमरूप अनूप है, परतें भिन्न त्रिकाल.... प्राणी! सोऽहं २३
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