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________________ आध्यात्मिक भजन संग्रह अलख अमूरति नित्य निरंजन, एकरूप निज जानना । वरन फरस रस गंध न जाकै, पुन्य पाप विन मानना ।।२ ।।तन. ।। करि विवेक उर धारि परीक्षा, भेद-विज्ञान विचारना। 'बुधजन' तन” ममत मेटना, चिदानंद पद धारना ।।३।।तन. ।। ४. तेरो करि लै काज वक्त फिरना (राग सारंग लूहरी) तेरो करि लै काज बक्त फिरना ।।तेरी. ।।टेक ।। नरभव तेरे वश चालत है, फिर परभव परवश परना ।।१।।तेरो. ।। आन अचानक कंठ दबैंगे, तब तोकौं नाही शरना। या विलम न ल्याय बावरै, अब ही कर जो है करना ।।२।।तेरो. ।। सब जीवनकी दया धार उर, दान सुपात्रनि कर धरना। जिनवर पूजि शास्त्रसुनि नित प्रति, बुधजन संवर आचरना ।।३।।तेरो. ।। ५. भजन बिन यौँ ही जनम गमायो (राग सारंग पूरबी) भजन बिन यों ही जनम गमायो ।।भजन. ।।टेक।। पानी पहिल्यां पाल न बांधी, फिर पी, पछतायो।।१।।भजन. ।। रामा-मोह भये दिन खोवत, आशा पाश बंधायो। जप तप संजम दान न दीनौं, मानुष जनम हरायो।।२।।भजन. ।। देह शीश जब कांपन लागी, दसन चला चल थायो। लागी आगि भुजावन कारन, चाहत कूप खुदायो ।।३ ।।भजन. ।। काल अनादि गुमायो भ्रमतां, कबहुँ न थिर चित ल्यायो। हरी विषय सुख भरम भुलानो, मृग तिसना-वश धायो।।४।।भजन. ।। ६. अरे हाँ रे तैं तो सुधरी बहुत बिगारी (राग गौड़ी ताल) अरे हाँ रे तो सुधरी बहुत बिगारी ।।अरे. ।।टेक ।। ये गति मुक्ति महलकी पौरी, पाय रहत क्यौं पिछारी।।१।।अरे. ।। पण्डित बुधजनजी कृत भजन परकौं जानि मानि अपनो पद, तजि ममता दुखकारी। श्रावक कुल भवदधि तट आयो, बूड़त क्यौरे अनारी ।।२ ।।अरे. ।। अबहूँ चेत गयो कुछ नाहीं, राखि आपनी बारी । शक्ति समान त्याग तप करिये, तब बुधजन सिरदारी ।।३।।अरे. ।। ७. मैंने देखा आतमराम (राग काफी कनड़ी) मैंने देखा आतमरामा ।।मैंने. ।।टेक।। रूप फरस रस गंधर्ते न्यारा, दरस-ज्ञान-गुनधामा । नित्य निरंजन जाकै नाहीं, क्रोध लोभ मद कामा ।।१।।मैंने. ।। भूख प्यास सुख दुख नहिं जाकै, नाहिं बन पुर गामा। नहिं साहिब नहिं चाकर भाई, नहीं तात नहिं मामा ।।२।।मैंने. ।। भूलि अनादि थकी जग भटकत, लै पुद्गल का जामा। 'बुधजन' संगति जिनगुरुकी तैं, मैं पाया मुझ ठामा ।।३।।मैंने. ।। ८. अब अघ करत लजाय रे भाई (राग काफी कनड़ी - ताल पसतो) अब अघ करत लजाय रे भाई ।।अब. ।।टेक ।। श्रावक घर उत्तम कुल आयो, भैंटे श्री जिनराय ।।१।।अब. ।। धन वनिता आभूषन परिग्रह, त्याग करौ दुखदाय । जो अपना तू तजि न सकै पर, सेयां नरकन जाय ।।२।।अब. ।। विषय काज क्यौं जनम गुमावै, नरभव कब मिलि जाय। हस्ती चढ़ि ईंधन ढोवे, बुधजन कौन वसाय ।।३ ।।अब. ।। ९. तोकौं सुख नहिं होगा लोभीड़ा! (राग काफी कनड़ी) तोकौं सुख नहिं होगा लोभीड़ा! क्यौं भूल्या रे परभावनमें ।।तोकौं. ।।टेक ।। किसी भाँति कहूँका धन आवै, डोलत है इन दावनमें।।१।।तोकौं ।। wak kalah Data
SR No.008336
Book TitleAdhyatmik Bhajan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size392 KB
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