________________
अनुक्रमणिका
३. पण्डित बुधजनजी कृत भजन
• और ठौर क्यों हेरत प्यारा, तेरे हि घट में जानन हारा
• काल अचानक ही ले जायगा • तन देख्या अथिर घिनावना
• तेरो करि लै काज वक्त फिरना • भजन बिन यौं ही जनम गमायो अरे हाँ रे तैं तो सुधरी बहुत बिगारी
·
• मैंने देखा आतमराम • अब अघ करत लजाय रे भाई
. तोकौं सुख नहिं होगा लोभीड़ा !
• नरभव पाय फेरि दुख भरना • आगे कहा करसी भैया
• बाबा मैं न काहूका
•
धर्म बिन कोई नहीं अपना • निजपुर में आज मची होरी
• मेरा साँई तौ मोमैं नाहीं न्यारा • उत्तम नरभव पायकै
• जिनबानी के सुनैस मिथ्यात मिटै
• मति भोगन राचौ जी
• सम्यग्ज्ञान बिना, तेरो जनम अकारथ जाय
• भोगारां लोभीड़ा, नरभव खोयौ रे अज्ञान
• बन्यौ म्हारै या घरीमैं रंग
• कींपर करो जी गुमान • अब घर आये चेतनराय
• हमकौं कछू भय ना रे
म्हे तौ थांका चरणां लागां
७८-८७
७८
८०
८१
८२
८३
८४
८५
८६
८७
marak 3D Kailash Data Antanji Jain Bhajan Book pra
(४०)
पण्डित बुधजनजी कृत भजन
१. और ठौर क्यों हेरत प्यारा, तेरे हि घटमें जाननहारा (राग तिताला)
और ठौर क्यों हेरत प्यारा, तेरे हि घटमें जाननहारा ।। और. । । टेक ।। चलन हलन थल वास एकता, जात्यान्तरतै न्यारा न्यारा ।। १ ।। और. ।। मोह उदय रागी द्वेषी है, क्रोधादिक का सरजनहारा । भ्रमत फिरत चारौं गति भीतर, जनम मरन भोगत-दुख भारा ।। २ ।। और. ।। गुरु उपदेश लखै पद आपा, तबहिं विभाव करै परिहारा । एकाकी बुधजन निश्चल, पावै शिवपुर सुखद अपारा।। ३ ।। और ।। २. काल अचानक ही ले जाया
(राग तिताला) काल अचानक ही ले जायगा,
गाफिल होकर रहना क्या रे ।। काल. । । टेक ।।
छिन हूँ तोकूं नाहिं बचावै, तौ सुभटनका रखना क्या रे ।। १ ।। काल. ।। रंच स्वाद करिनके काजै, नरकनमें दुख भरना क्या रे । कुलजन पथिकनि के हितकाजै, जगत जाल में परना क्या रे ।। २ ।। काल. ।। इंद्रादिक कोउ नाहिं बचैया, और लोकका शरना क्या रे। निश्चय हुआ जगतमें मरना, कष्ट परै तब डरना क्या रे ।। ३ । ।काल. ।। अपना ध्यान करत खिर जावै, तौ करमनिका हरना क्या रे।
अब हित कर आरत तजि बुधजन, जन्म जन्ममें जरना क्यारे ।।४ ॥ काल. ।। ३. तन देव्या अथिर घिनावना
(राग सारंग)
तन देख्या अथिर घिनावना । । तन ।। टेक ॥
बाहर चाम चमक दिखलावै, माहीं मैल अपावना ।
बालक जवान बुढ़ापा मरना, रोगशोक उपजावना । । १ । । तन ।।