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________________ आध्यात्मिक भजन संग्रह जीवनकी दया पालैं, झूठ तजि चोरी टालें। परनारी भालैं नैंन जिनके लुकत हैंगे ।।२ ।।जगमें. ।। जिय में सन्तोष धारें, हियें समता विचारें । आगैंको न बंध पाएँ, पाईं सौं चुकत हैंगे ।।३ ।।जगमें. ।। बाहिज क्रिया आराधैं, अन्दर सरूप साधैं । 'भूधर' ते मुक्त लाधैं, कहूँ न रुकत हैंगे ।।४ ।।जगमें. ।। ३८. वे कोई अजब तमासा, देख्या बीच जहान वे, जोर तमासा सुपनेका-सा । वे कोई अजब तमासा, देख्या बीच जहान वे, जोर तमासा सुपनेका-सा एकौंके घर मंगल गावें, पूरी मनकी आसा । एक वियोग भरे बहु रोवै, भरि भरि नैन निरासा ।।१।।वे कोई.।। तेज तुरंगनिपै चढ़ि चलते, पहिरै मलमल खासा। रंक भये नागे अति डोलैं, ना कोइ देय दिलासा ।।२।।वे कोई. ।। तरकैं राज तखत पर बैठा, था खुश वक्त खुलासा । ठीक दुपहरी मुद्दत आई, जंगल कीना वासा ।।३।।वे कोई. ।। तन धन अथिर निहायत जगमें, पानी माहिं पतासा। 'भूधर' इनका गरब क जे, धिक तिनका जनमासा ।।४ ।।वे कोई. ।। ३९. सुनि सुजान! पांचों रिपु वश करि, (राग कल्याण) सुनि सुजान! पांचों रिपु वश करि, सुहित करन असमर्थ अवश करि । जैसे जड़ खखार का कीड़ा, सुहित सम्हाल सबै नहिं फंस करि ।। पांचन को मुखिया मन चंचल, पहले ताहि पकर, रस कस करि । समझ देखि नायक के जीतै, जै है भाजि सहज सब लशकरि ।।१।। इंद्रियलीन जनम सब खोयो, बाकी चल्यो जात है खस करि । 'भूधर' सीख मान सतगुरुकी, इनसों प्रीति तोरि अब वश करि ।।२।। hampional पण्डित भूधरदासजी कृत भजन ४०. अहो दोऊ रंग भरे खेलत होरी (राग सोरठ) अहो दोऊ रंग भरे खेलत होरी । अलख अमूरति की जोरी ।।अहो. ।। इतमैं आतम राम रंगीले, उतमैं सुबुद्धि किसोरी। या कै ज्ञान सखा संग सुन्दर, वाकै संग समता गोरी ।।१।।अहो. ।। सुचि मन सलिल दया रस केसरि, उदै कलश में घोरी। सुधी समझि सरल पिचकारी, सखिय प्यारी भरि भरि छोरी ।।२।।अहो. ।। सत गुरु सीख तान धुरपद की, गावत होरा होरी। पूरब बंध अबीर उड़ावत, दान गुलाल भर झोरी ।। ३ ।।अहो. ।। 'भूधर' आजि बड़े भागिन, सुमति सुहागिन मोरी। सो ही नारि सुलक्षिनी जगमैं, जासौं पतिनै रति जोरी ।।४।।अहो. ।। ४१. होरी खेलौंगी, घर आये चिदानंद कन्त (राग धमाल सारंग) होरी खेलौंगी, घर आये चिदानंद कन्त ।।टेक ।। शिशिर मिथ्यात गयो आई अब, कालकी लब्धि बसन्त ।।होरी. ।। पिय सँग खेलनको हम सखियो! तरसी काल अनन्त । भाग फिरे अब फाग रचानों, आयो बिरहको अन्त ।।१।।होरी. ।। सरधा गागरमें रुचिरूपी, केसर घोरि तुरन्त । आनंद नीर उमंग पिचकारी, छोड़ो नीकी भन्त ।।२ ।।होरी. ।। आज वियोग कुमति सौतनिकै, मेरे हरष महन्त । 'भूधर' धनि यह दिन दुर्लभ अति, सुमति सखी विहसन्त ।।३।।होरी. ।। - . wak kata Data pics (३९)
SR No.008336
Book TitleAdhyatmik Bhajan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size392 KB
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