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________________ आध्यात्मिक भजन संग्रह दांतनकी पंक्ति टूटी, हाड़नकी संधि छूटी, कायाकी नगरि लूटी, जात नहिं पहिचानी ।।२।।आया रे. ।। बालोंने वरन फेरा, रोगों ने शरीर घेरा, पुत्रहू न आवे नेरा, औरोंकी कहा कहानी ।।३ ।।आया रे. ।। 'भूधर' समुझि अब, स्वहित करैगो कब, यह गति है है जब, तब पिछते हैं प्राणी ।।४ ।।आया रे. ।। २३. चरखा चलता नाहीं (२) चरखा हुआ पुराना (वे) (राग आसावरी) चरखा चलता नाहीं (२) चरखा हुआ पुराना (वे) ।। पग खूटे दो हालन लागे, उर मदरा खखराना। छीदी हुई पांखड़ी पांसू, फिरै नहीं मनमाना ।।१।। रसना तकली ने बल खाया, सो अब कैसै खूटे। शब्द-सूत सूधा नहिं निकसे, घड़ी-घड़ी पल-पल टूटै।।२।। आयु मालका नहीं भरोसा, अंग चलाचल सारे । रोज इलाज मरम्मत चाहे, वैद्य बढ़ई हारे ।।३ ।। नया चरखला रंगा-चंगा, सबका चित्त चुरावै । पलटा वरन गये गुन अगले, अब देखें नहिं भावै ।।४ ।। मोटा मही कातकर भाई!, कर अपना सुरझेरा। अंत आग में ईंधन होगा, 'भूधर' समझ सवेरा ।।५।। ३४. काया गागरि, जोझरी, तुम देखो चतुर विचार हो (राग श्रीगौरी) काया गागरि, जोझरी, तुम देखो चतुर विचार हो ।।टेक ।। जैसे कुल्हिया कांचकी, जाके विनसत नाहीं वार हो ।। मांसमयी माटी लई अरु, सानी रुधिर लगाय हो । कीन्हीं करम कुम्हारने, जासों काहूकी न वसाय हो।।१।।काया.॥ पण्डित भूधरदासजी कृत भजन और कथा याकी सुनौं, यामैं अध उरध दश ठेह हो। जीव सलिल तहाँ थंभ रह्यौ भाई, अद्भुत अचरज येह हो।।२।।काया. ।। यासौं ममत निवारकैं, नित रहिये प्रभु अनुकूल हो। 'भूधर' ऐसे ख्याल का भाई, पलक भरोसा भूल हो।।३।।काया. ।। ३५. गाफिल हुवा कहाँ तू डोले, दिन जाते तेरे भरती में (राग भैरवी) गाफिल हुवा कहाँ तू डोले, दिन जाते तेरे भरती में ।। चोकस करत रहत है नाही, ज्यों अंजुलि जल झरती में। तैसे तेरी आयु घटत है, बचै न बिरिया मरती में ।।१।। कंठ दबै तब नाहिं बनेगो, काज बनाले सरती में । फिर पछताये कुछ नहिं होवै, कूप खुदै नहीं जरती में ।।२।। मानुष भव तेरा श्रावक कुल, यह कठिन मिला इस धरती में। 'भूधर' भवदधि चढ़ नर उतरो, समकित नवका तरती में।।३।। ३६. जगत जन जूवा हारि चले (राग विहाग) जगत जन जूवा हारि चले ।।टेक ।। काम कुटिल संग बाजी मांडी, उन करि कपट छले ।।जगत. ।। चार कषायमयी जहँ चौपरि, पासे जोग रले । इस सरवस उत कामिनी कौड़ी, इह विधि झटक चले।।१।।जगत.।। कूर खिलार विचार न कीन्हों, है है ख्वार भले । बिना विवेक मनोरथ काके, 'भूधर' सफल फले ।।२।।जगत.।। ३७. जगमें श्रद्धानी जीव जीवन मुकत हैंगे (राग बङ्गाला) जगमें श्रद्धानी जीव जीवन मुकत हैंगे ।।टेक।। देव गुरु सांचे मार्ने, सांचो धर्म हिये आने । ग्रन्थ ते ही सांचे जानैं, जे जिन उकत हैंगे ।।१।।जगमें. ।। (३८)
SR No.008336
Book TitleAdhyatmik Bhajan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size392 KB
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