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________________ आध्यात्मिक भजन संग्रह मानुष भवकी पैठ में जग विणजी आया । चतुर कमाई कर चले, मूढ़ौं मूल गुमाया ।।२।।अब. ।। तिसना तज तप जिन किया, तिन बहु हित जोया। भोग मगन शठ जे रहे, तिन सरवस खोया ।।३ ।।अब. ।। काम विथा पीड़ित जिया, भोगहि भले जानैं । खाज खुजावत अंगमें, रोगी सुख मानें ।।४ ।।अब. ।। राग उरगनी जोरतें, जग डसिया भाई! सब जिय गाफिल हो रहे, मोह लहर चढ़ाई ।।५ ।।अब. ।। गुरु उपगारी गारुडी, दुख देख निवाएँ । हित उपदेश सुमंत्रसों, पढ़ि जहर उतारै ।।६ ।।अब. ।। गुरु माता गुरु ही पिता, गुरु सज्जन भाई। 'भूधर' या संसारमें, गुरु शरनसहाई ।।७।।अब. ।। १८. भलो चेत्यो वीर नर तू, भलो चेत्यो वीर (राग सोरठ) भलो चेत्यो वीर नर तू, भलो चेत्यो वीर ।।टेक ।। समुझि प्रभुके शरण आयो, मिल्यो ज्ञान वजीर ।।भलो. ।। जगतमें यह जनम हीरा, फिर कहाँ थो धीर । भलीवार विचार छाड्यो, कुमति कामिनी सीर ।।१।।भलो. ।। धन्य धन्य दयाल श्रीगुरु सुमरि गुणगंभीर। नरक परतें राखि लीनों, बहुत कीनी भीर ।।२।।भलो. ।। भक्ति नौका लही भागनि, कितक भवदधि नीर। ढील अब क्यों करत 'भूधर', पहुँच पैली तीर ।।३ ।।भलो. ।। १९. देखो भाई! आतमदेव बिराजै (राग गौरी) देखो भाई! आतमदेव बिराजै ।।टेक ।। इसही हूठ हाथ देवलमैं, केवलरूपी राजै ।। पण्डित भूधरदासजी कृत भजन अमल उजास जोतिमय जाकी, मुद्रा मंजुल छाजै। मुनिजनपूज अचल अविनाशी, गुण बरनत बुधि लाजै ।।१।।देखो. ।। परसंजोग समल प्रतिभासत, निज गुण मूल न त्याजै। जैसे फटिक पखान हेतसों, श्याम अरुन दुति साजै ।।२।।देखो. ।। 'सोऽहं' पद समतासो ध्यावत, घटहीमैं प्रभु पाजै । 'भूधर' निकट निवास जासुको, गुरु बिन भरम न भाजै।।३।।देखो. ।। २०. अन्तर उज्जल करना रे भाई! (राग सोरठ) अन्तर उज्जल करना रे भाई! ।।टेक ।। कपट कृपान तजै नहिं तबलौ, करनी काज न सरना ।। जप-तप-तीरथ-यज्ञ-व्रतादिक आगम अर्थ उचरना रे। विषय-कषाय कीच नहिं धोयो, यों ही पचि पचि मरना रे।।१।।अन्तर. ।। बाहिर भेष क्रिया उर शुचिसों, कीये पार उतरना रे । नाहीं है सब लोक-रंजना, ऐसे वेदन वरना रे ।।२।।अन्तर. ।। कामादिक मनसौं मन मैला, भजन किये क्या तिरना रे। 'भूधर' नील वसन पर कैसैं, केसर रंग उछरना रे।।३।।अन्तर. ।। २१. अब मेरे समकित सावन आयो (राग मलार) अब मेरे समकित सावन आयो ।।टेक ।। बीति कुरीति मिथ्या मति ग्रीषम, पावस सहज सुहायो ।। अनुभव दामिनि दमकन लागी, सुरति घटा घन छायो। बोलै विमल विवेक पपीहा, सुमति सुहागिनि भायो।।१।।अब मेरे. ।। गुरुधुनि गरज सुनत सुख उपजै, मोर सुमन विहसायो। साधक भाव अंकूर उठे बहु, जित तित हरष सवायो।।२।।अब मेरे. ।। भूल धूल कहिं भूल न सूझत, समरस जल झर लायो। 'भूधर' को निक्सै अब बाहिर, निज निरचू घर पायो।।३।।अब मेरे. ।। (३५)
SR No.008336
Book TitleAdhyatmik Bhajan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size392 KB
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