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________________ आध्यात्मिक भजन संग्रह पण्डित भूधरदासजी कृत भजन २२. सुनि ठगनी माया, तैं सब जग ठग खाया (राग सोरठ) सुनि ठगनी माया, नैं सब जग ठग खाया ।।टेक ।। टुक विश्वास किया जिन तेरा, सो मूरख पछताया ।। आपा तनक दिखाय बीज ज्यों, मूढमती ललचाया। करि मद अंध धर्म हर लीनौं, अन्त नरक पहुँचाया ।।१।।सुनि. ।। केते कंत किये तैं कुलटा, तो भी मन न अघाया। किसही सौं नहिं प्रीति निबाही; वह तजि और लुभाया ।।२।।सुनि. ।। 'भूधर' छलत फिरै यह सबकों, भौंदू करि जग पाया। जो इस ठगनी को ठग बैठे, मैं तिनको सिर नाया ।।३ ।।सुनि. ।। २३. अज्ञानी पाप धतूरा न बोय (राग सोरठ) अज्ञानी पाप धतूरा न बोय ।।टेक ।। फल चाखन की बार भरै दृग, मरि है मूरख रोय ।। किंचित् विषयनि सुख के कारण, दुर्लभ देह न खोय । ऐसा अवसर फिर न मिलैगा, इस नींदड़ी न सोय ।।१।।अज्ञानी. ।। इस विरियां मैं धर्म-कल्प-तरु, सींचत स्याने लोय । तू विष बोवन लागत तो सम, और अभागा कोय ।।२।।अज्ञानी. ।। जो जग में दुखदायक बेरस, इसही के फल सोय । यों मन 'भूधर' जानिकै भाई, फिर क्यों भोंदू होय ।।३ ।।अज्ञानी. ।। २४. ऐसी समझके सिर धूल ऐसी समझके सिर धूल ।।टेक।। धरम उपजन हेत हिंसा, आचरै अघमूल ।। छके मत-मद पान पीके रहे मनमें फूल । आम चाखन चहैं भोंदू, बोय पेड़ बबूल ।।१ ।।ऐसी. ।। १. बीज-बिजली देव रागी लालची गुरु, सेय सुखहित भूल । धर्म नगकी परख नाहीं, भ्रम हिंडोले झूल ।।२।।ऐसी. ।। लाभ कारन रतन विणजै, परखको नहिं सूल। करत इहि विधि वणिज ‘भूधर', विनस जै है मूल ।।३ ।।ऐसी. ।। २५. चित्त! चेतनकी यह विरियां रे (राग सोरठ) चित्त! चेतनकी यह विरियां रे ।।टेक ।। उत्तम जनम सुतन तरूनापौ, सुकृत बेल फल फरियां रे ।। लहि सत-संगतिसौं सब समझी, करनी खोटी खरियां रे। सुहित संभाल शिथिलता तजिदै, जाहैं बेली झरियां रे।।१।।चित. ।। दल बल चहल महल रूपेका, अर कंचनकी कलियां रे। ऐसी विभव बढ़ी कै बढ़ि है, तेरी गरज क्या सरियां रे ।।२।।चित. ।। खोय न वीर विषय खल सा, ये क्रोड की घरियां रे। तोरि न तनक तगा हित 'भूधर' मुकताफलकी लरियां रे।।३।।चित.।। २६. गरव नहिं कीजै रे, ऐ नर निपट गंवार (राग ख्याल) गरव नहिं कीजै रे, ऐ नर निपट गंवार ।।टेक ।। झूठी काया झूठी माया, छाया ज्यों लखि लीजै रे।।१।।गरव. ।। कै छिन सांझ सुहागरु जोबन, कै दिन जगमें जीजै रे।।२।।गरव. ।। बेगा चेत विलम्ब तजो नर, बंध बढ़े थिति छीजै रे।।३ । गरव. ।। 'भूधर' पलपल हो है भारी, ज्यों ज्यों कमरी भीजै रे।।३।।गरव. ।। २७. बीरा! थारी बान बुरी परी रे, बरज्यो मानत नाहिं (राग सोरठ) बीरा! थारी बान बुरी परी रे, बरज्यो मानत नाहिं ।।टेक।। विषय-विनोद महा बुरे रे, दुख दाता सरवंग । at kabata (३६)
SR No.008336
Book TitleAdhyatmik Bhajan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size392 KB
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