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________________ आध्यात्मिक भजन संग्रह और अदेवन के चितवनको अब चित चाह टरी। ज्यों सब धूलि दबै दिशि दिशिकी, लागत मेघझरी ।।१ । नैन. ।। छबि समाय रही लोचनमें, विसरत नाहिं घरी। 'भूधर' कह यह टेव रहो थिर, जनम जनम हमरी ।। २ ।।नैन. ।। १३. प्रभु गुन गाय है, यह औसर फेर न पाय रे (राग ख्याल) प्रभु गुन गाय रै, यह औसर फेर न पाय रे ।।टेक ।। मानुष भव जोग दुहेला, दुर्लभ सतसंगति मेला । सब बात भली बन आई, अरहन्त भजौ रे भाई ।।१।।प्रभु. ।। पहले चित-चीर संभारो कामादिक मैल उतारो। फिर प्रीति फिटकरी दीजे, तब सुमरन रंग रंगीजे ।।२।।प्रभु. ।। धन जोर भरा जो कूवा, परिवार बढ़े क्या हूवा । हाथी चढ़ि क्या कर लीया, प्रभु नाम बिना धिक जीया ।।३।।प्रभु. ।। यह शिक्षा है व्यवहारी, निहचै की साधनहारी। 'भूधर' पैडी पग धरिये, तब चढ़ने को चित करिये ।।४ ।।प्रभु. ।। १४. सुन ज्ञानी प्राणी, श्री गुरु सीख सयानी (राग सोरठ) सुन ज्ञानी प्राणी, श्री गुरु सीख सयानी ।।टेक।। नरभव पाय विषय मति सेवो, ये दुरगति अगवानी ।।सुन. ।। यह भव कुल यह तेरी महिमा, फिर समझी जिनवानी। इस अवसर में यह चपलाई, कौन समझ उर आनी ।।१।।सुन. ।। चंदन काठ-कनक के भाजन, भरि गंगा का पानी। तिल खलि रांधत मंदमती जो, तुझ क्या रीस बिरानी ।।२।।सुन. ।। 'भूधर' जो कथनी सो करनी, यह बुद्धि है सुखदानी। ज्यों मशालची आप न देखै, सो मति करै कहानी ।।३।।सुन.।। पण्डित भूधरदासजी कृत भजन १५. वे मुनिवर कब मिलि है उपगारी (राग मलार) वे मुनिवर कब मिलि है उपगारी ।।टेक।। साधु दिगम्बर नगन निरम्बर, संवर भूषणधारी ।।वे मुनि. ।। कंचन-काच बराबर जिनकैं, ज्यौं रिपु त्यौं हितकारी। महल-मसान मरन अरु जीवन, सम गरिमा अरु गारी।।१।।वे मुनि.।। सम्यग्ज्ञान प्रधान पवन बल, तप पावक परजारी। सेवत जीव सुवर्ण सदा जै, काय-कारिमा टारी ।।२।।वे मुनि. ।। जोरि जुगल कर 'भूधर' बिनवै, तिन पद ढोक हमारी। भाग उदय दरसन जब पाऊँ, ता दिनकी बलिहारी ।।३ ।।वे मुनि. ।। १६. सो गुरुदेव हमारा है साधो (राग सोरठ) सो गुरुदेव हमारा है साधो ।।टेक ।। जोग-अगनि मैं जो थिर राखें, यह चित्त चंचल पारा है।। करन-कुरंग खरे मदमाते, जप-तप खेत उजारा है। संजम-डोर-जोर वश कीने, ऐसा ज्ञान-विचारा है।।१।।सो गुरु.।। जा लक्ष्मीको सब जग चाहै, दास हुआ जग सारा है। सो प्रभु के चरनन की चेरी, देखो अचरज भारा है।।२।।सो गुरु.।। लोभ-सरप के कहर जहर की, लहरि गई दुःख टारा है। 'भूधर' ता रिषि का शिष्य हजे, तब कछु होय सुधारा है।।३।।सो गुरु.।। १७. अब पूरी कर नींदड़ी, सुन जिया रे! चिरकाल .... अब पूरी कर नींदड़ी, सुन जिया रे! चिरकाल तू सोया। माया मैली रातमें, केता काल विगोया ।।अब. ।। धर्म न भूल अयान रे! विषयों वश वाला। - सार सुधारस छोड़के, पीवै जहर पियाला ।।१।।अब. ।। (३४)
SR No.008336
Book TitleAdhyatmik Bhajan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size392 KB
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