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________________ आध्यात्मिक भजन संग्रह ८. भवि देखि छबी भगवान की (राग सारङ्ग) भवि देखि छबी भगवान की ।।टेक।। सुन्दर सहज सोम आनन्दमय, दाता परम कल्यानकी । भवि. ।। नासादृष्टि मुदित मुखवारिज, सीमा सब उपमान की। अंग अडोल अचल आसन दिढ़, वही दशा निज ध्यान की।।१।।भवि.।। इस जोगासन जोगरीतिसौं, सिद्धि भई शिवथानकी। ऐसें प्रगट दिखावै मारग, मुद्रा धात पखान की ।।२।।भवि. ।। जिस देखें देखन अभिलाषा, रहत न रंचक आनकी। तृपत होत ‘भूधर' जो अब ये, अंजुलि अमृतपान की।।३।।भवि. ।। ९. जिनराज चरन मन मति बिसरै (राग नट) जिनराज चरन मन मति बिसरै ।।टेक ।। को जानैं किहिंवार कालकी, धार अचानक आनि परे ।। देखत दुख भजि जाहिं दशौं दिश पूजन पातकपुंज गिरे। इस संसार क्षारसागरसौं, और न कोई पार करै ।।१।। इक चित ध्यावत वांछित पावत, आवत मंगल विघन टरै। मोहनि धूलि परी माँथे चिर, सिर नावत ततकाल झरै ।।२।। तबलौं भजन संवार सयानें, जबलौं कफ नहिं कंठ अरै। अगनि प्रवेश भयो घर भूधर', खोदत कूप न काज सरै।।३।। १०. जिनराज ना विसारो, मति जन्म वादि हारो (राग पंचम) जिनराज ना विसारो, मति जन्म वादि हारो। नर भौ आसान नाहिं, देखो सोच समझ वारो।।जिनराज ।। सुत मात तात तरुनी, इनसौं ममत निवारो। सबहीं सगे गरजके, दुखसीर नहिं निहारो ।।१।।जिनराज ।। पण्डित भूधरदासजी कृत भजन जे खायं लाभ सब मिलि, दुर्गति में तुम सिधारो। नट का कुटंब जैसा यह खेल यों विचारो ।।२।।जिनराज ।। नाहक पराये काजै, आपा नरक में पारो । 'भूधर' न भूल जगमैं, जाहिर दगा है यारो ||३||जिनराज ।। ११. पुलकन्त नयन चकोर पक्षी ........ (हरिगीतिका) पुलकन्त नयन चकोर पक्षी, हँसत उर इन्दीवरो। दुर्बुद्धि चकवी बिलख बिछुरी, निविड़ मिथ्यातम हरो ।। आनन्द अम्बुज उमगि उछर्यो, अखिल आतम निरदले । जिनवदन पूरनचन्द्र निरखत, सकल मनवांछित फले ।।१।। मुझ आज आतम भयो पावन, आज विघ्न विनाशियो। संसार सागर नीर निवट्यो, अखिल तत्त्व प्रकाशियो ।। अब भई कमला किंकरी मुझ, उभय भव निर्मल ठये। दुःख जरो दुर्गति वास निवरो, आज नव मंगल भये ।।२ ।। मनहरन मूरति हेरि प्रभुकी, कौन उपमा लाइये । मम सकल तनके रोम हुलसे, हर्ष और न पाइये ।। कल्याणकाल प्रतक्ष प्रभुको, लखें जो सुर नर घने । तिस समय की आनन्द महिमा, कहत क्यों मुखसों बने ।।३।। भर नयन निरखे नाथ तुमको, और बांछा ना रही। मन ठठ मनोरथ भये पूरन, रंक मानो निधि लही ।। अब होय, भव-भव भक्ति तुम्हरी, कृपा ऐसी कीजिये । कर जोर ‘भूधरदास' बिनवै, यही वर मोहि दीजिये ।।४ ।। १२. नैननि को वान परी, दरसन की (राग ख्याल) नैननि को वान परी, दरसन की ।।टेक।। -- जिन मुखचन्द चकोर चित मुझ, ऐसी प्रीति करी ।नैन. ।। (३३)
SR No.008336
Book TitleAdhyatmik Bhajan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size392 KB
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