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आध्यात्मिक भजन संग्रह
न्यायमत जो कोई कलपाता है जिया औरों का । याद रक्खो वह भी कल पायेगा कल देख लिया ।। ७१. अय महावीर जमाने में हितंकर तू है
अय महावीर जमाने में हितंकर तू है । सारे दुखियों के लिये एक दयाकर तू है । तू ही है निर्भय करन और तरन तारन भी । तू है निर्दोष सिदाकत का भी रहबर तू है । बेखकन तू है पहाड़ों का करम का बेशक । विश्व लोचन है तू ही ज्ञान का सागर तू है । पाक बाणी है तेरी रमजे सिदाकत से भरी । नय व प्रमाण की तकमील का दफ्तर तू है ।। तुझको नफरत है न रगबत है किसी से हरगिज । सब चराचर को समझता जो बराबर तू है । तू ने पैगाम अहिंसा का सुनाया सबको । बस जमाने में हितोपदेशी सरासर तू है । तू ने गुमराहों का रुख फेरा हकीकत की तरफ | हाँ हकीकत में हकीकत का समन्दर तू है ।। तू निजानन्द में है लीन सरापा स्वामी । मोक्ष की राह का पुर नूर दिवाकर तू है । दिल से न्यामत के जहालत की हो जुलमत काफूर । ज्ञान दर्शन का जहाँ में माहे अनवर तू है । ७२. प्रभो वीतरागी हितंकर तू ही है।
प्रभो वीतरागी हितंकर तू ही है । तू ही कृपासिंधु दयाकर तू ही है । चराचर का हामी तू है सबका स्वामी । परोपकारता का समन्दर तू ही है ।।
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विभिन्न कवियों के भजन
अहिंसा का पेगाम तू ने सुनाया । बिला शक जगत का जिनेश्वर तू ही है ।। न रागी न द्वेषी तुझे सब बराबर । हितेषी जहाँ में सरासर तू ही है । तू है सच्चिदानंद कल्याणरूपी । अवश्य सदगुणों का हाँ सागर तू ही है ।। अपूरब दयामय है वाणी तुम्हारी । मुक्ति जाने वालों का रहबर तू ही है ।। अंधेरा जहालत का तुमने मिटाया । सिदाकत का बेशक दिवाकर तू ही है । धरम का धुरंधर है शिवमग का नेता । तू ही सार है सबसे बेहतर तू ही है ।। लगा दीजे न्यामत को रस्ते पे स्वामी । शरण में हूँ तेरी कि बरतर तू ही है ।।
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७३. धर्म बिन बावरे तू ने मानव रतन गँवाया धर्म बिन बावरे तू ने मानव रतन गंवाया । । टेक ।।
कभी न कीना आत्म निरीक्षण, कभी न निज गुण गाया । पर परिणति से प्रीति बढ़ाकर काल अनन्त बढ़ाया ।। १ ।। यह संसार पुण्य-पापों का पुण्य देख ललचाया । दो हजार सागर के पीछे काम नहीं यह आया ।। २ ।। यह संसार भव समुद्र है वन विषयों हरषाया । ज्ञानी जन तो पार उतर गये मूरख रुदन मचाया || ३ || यह संसार ज्ञेय द्रव्य है आतम ज्ञायक गाया ।
कर्त्ता बुद्धि छोड़ दे चेतन नहीं तो फिर पछताया ।।४ ।।