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आध्यात्मिक भजन संग्रह
अथिर है जगत की सम्पत समझले दिल में अब नादां । राव और रंक होने का यूँही अफसोस खाता है ।। ऐशो इशरत में दुख होवे कहीं दुख में महा सुख हो । क्यों अपने में समझता है यह सब पुद्गल का नाता है ।। विनाशी सब तूं अविनाशी इन्हों पे क्या लुभाना है। निराला भेष है तेरा तू क्यों परमें फँसाता है । पिता सुत बन्धु और भाई सहेली संग की नारी । स्वारथ की सभी यारी भरोसा क्या रखाता है ।। अनादि भूल है तेरी स्वरूप अपना नहीं जाना । पड़ा है मोहका परदा नजर तुझको न आता है ।। है दर्शन ज्ञान गुण तेरा इसे भूला है क्यों मूरख । अरे अब तो समझले तू चला संसार जाता है ।। चेतन सबसे न्यारा है भूल से देह धारा है । तू तू है जड़ में न जड़ तुझमें तू क्यों धोखे में आता है ।। जगत में तूने चित लाया कि इन्द्री भोग मन भाया । कभी दिल में नहीं आया तेरा क्या जग से नाता है ।। तेरे में और परमातम में कुछ नहीं भेद अय चेतन । रतन आतम को मूरख कांच बदले क्यों बिकाता है ।। मोह के फंद में फंसकर क्यों अपनी न्यामत खोई । कर्म जंजीर को काटो इसी से मोक्ष पाता है ।। ६८. आपमें जबतक कि कोई आपको पाता नहीं आपमें जबतक कि कोई आपको पाता नहीं । मोक्ष के मंदिर तलक हरगिज कदम जाता नहीं ।।
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marak 3D Kailash Data Annanji Jain Bhajan Book 5
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विभिन्न कवियों के भजन
वेद या कुरान या पुराण सब पढ़ लीजिये । आपको जाने बिना मुक्ती कभी पाता नहीं ।। भाव करुणा कीजिये यह ही धरम का मूल है। जो सतावे और को सुख वह कभी पाता नहीं ।। हिरन खुशबू के लिये दौड़ा फिरे जंगल के बीच । अपनी नाभि में बसे इसको देख पाता नहीं ।। ज्ञानपे न्यामत तेरे है मोह का परदा पड़ा । इसलिये निज आत्मा तुझको नजर आता नहीं ।।
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६९. विषय भोग में तूने अय जिया कैसे जीको अपने लगा.. विषय भोग में तूने अय जिया कैसे जीको अपने लगा दिया। तेरा ज्ञान सूर्य समान था कैसे बादलों में छुपा दिया ।। तू तो सच्चिदानन्द रूप है तेरा ब्रह्मरूप सरूप है । जड़रूप भोग विलास में तूने अपने को भुला दिया ।। यह भोग शत्रु समान हैं छल कपट में परधान है। तेरे यार बनके तू देखले तुझे चारों गति में रूला दिया ।। कुमता ने अय न्यामत तुझे जगजाल में है फँसा दिया । दामन सुमत सी नारका तेरे कर से इसने छुड़ा दिया ।। ७०. जैसा जो करता है भरता है यहीं देख लिया
जैसा जो करता है भरता है यहीं देख लिया । करम का टाला नहीं टलता है फल देख लिया || बद से बद, नेक से नेकी का समर मिलता है। आज जो जैसा किया वैसा ही कल देख लिया ।। हरके सीता को जो रावण ने कुमत ठानी थी । आप मारा ही गया हरने का फल देख लिया ।।