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________________ आध्यात्मिक भजन संग्रह ६३. तुम्हारा चंद मुख निरखे सुपद रुचि मुझको आई है तुम्हारा चंद मुख निरखे सुपद रुचि मुझको आई है। ज्ञान चमका परापर की मुझे पहिचान आई है ।। कला बढ़ती है दिन दिन काम की रजनी बिलाई है। अमृत आनंद शासन ने शोक तृष्णा बुझाई है ।। जो इष्टानिष्ट में मेरी कल्पना थी नशाई है। मैंने निज साध्य को साधा उपाधी सब मिटाई है ।। धन्य दिन आज का न्यामत छबी जिन देख पाई है। सुधर गई आज सब बिगड़ी अचल ऋधि हाथ आई है ।। ६४. अरे यह क्या किया नादान तेरी क्या समझपे पड़.. अरे यह क्या किया नादान तेरी क्या समझपे पड़ गई धूल ।। र ।। आम हेत तैं बाग लगायो बो दिये पेड़ बम्बूल । फल चाखेगा क्या रोवेगा रहा है मन में फूल ।। हाथ सुमरनी बाँह कतरनी निज पद को गया भूल । मिथ्या दर्शन ज्ञान लिया रहा समकित से प्रतिकूल ।। कंचन भाजन कीच उठाया भरी रजाई शूल । न्यामत सौदा ऐसा किया जामें ब्याज रहा नाहीं मूल ।। ६५. परदेशिया में कौन चलेगा तेरे लार परदेशिया में कौन चलेगा तेरे लार ।। टेक ।। २०० चलेगी मेरी माता चलेगी मेरी नार । नहीं नहीं रे चेतन जावेंगी दर तक लार । । परदे ।। चलेगा मेरा भाई चलेगा मेरा यार । नहीं नहीं रे चेतन फूँकेंगे अग्नि मँझार । । परदे . ।। marak 3D Kailash Data Antanji Jain Bhajan Book pra (१०१) विभिन्न कवियों के भजन २०१ चलेगी मेरी माता की जाई मेरी लार । नहीं नहीं रे चेतन झूठा है सारा व्यवहार । । परदे. ।। चलेगा मेरा बेटा पिता परिवार। नहीं नहीं रे चेतन मतलब का सारा संसार ।। परदे . ।। चलेगी मेरी फौज चलेगा दरबार । नहीं नहीं रे चेतन जीते जी की है सरकार ।। परदे ।। चलेगा मेरा माल खजाना घरबार । नहीं नहीं रे चेतन पड़ा रहेगा सब कार ।। परदे . ।। चलेगी मेरी काया चलेगा मनसार । नहीं नहीं रे न्यामत छोड़ेंगे तोहें मंझधार ।। परदे . ।। ६६. हाय इन भोगों ने क्या रंग दिखाया मुझको हाय इन भोगों ने क्या रंग दिखाया मुझको । बेखबर जगत के धन्दों में फंसाया मुझको ।। मैं तो चेतन हूँ निराकार सभी से न्यारा । दुष्ट भोगों ही ने कर्मों से बँधाया मुझको ।। नींद गफलत से मेरी आँख कभी भी न खुली । भोग इन्द्री और विषयों ने भुलाया मुझको ।। ज्ञान धन मेरा हरा रूप दिखाकर अपना । योनि चौरासी में भटका के रुलाया मुझको ।। अब न सेऊँगा कभी भूल के इन विषयों को । न्यायमत जैन धरम अब तो है पाया मुझको ।। ६७. बिना सम्यक्त के चेतन जनम बिरथा गँवाता है बिना सम्यक्त के चेतन जनम बिरथा गँवाता है। तुझे समझाएँ क्या मूरख नहीं तू दिल में लाता है ।।
SR No.008336
Book TitleAdhyatmik Bhajan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size392 KB
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