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आध्यात्मिक भजन संग्रह ५८. दुनिया में देखो सैकड़ों आये चले गये दुनिया में देखो सैंकड़ों आये चले गये। सब अपनी करामात दिखाये चले गये ।।टेक।। अर्जुन रहा न भीम न रावण महाबली। इस काल बली से सभी हारे चले गये ।।१।। क्या निर्धनी धनवंत और मूर्ख व गुनवंत । सब अन्त समय हाथ पसारे चले गये ।।२।। सब जंत्र मंत्र रह गये कोई बचा नहीं। इक वह बचे जो कर्म को मारे चले गये ।।३।। सम्यक्त्व धार न्यामत यों दिल में समझ ले। पछतावोगे जो प्राण तुम्हारे चले गये ।।४ ।। ५९. तू क्या उम्र की शाख पर सो रहा है
तू क्या उम्र की शाख पर सो रहा है। खबर भी है तुझको कि क्या हो रहा है।।१।। कतरते हैं चूहे इसे रात दिन दो। कि जिस पर भी तू बेखबर सो रहा है।।२।। न्यामत यह टहनी गिरा चाहती है।
विषय बूंद पर अपनी जां खो रहा है ।।३।। ६०. जब हंस तेरे तनका कहीं उड़के जायेगा
जब हंस तेरे तनका कहीं उड़के जायेगा। अय दिल बता तू किससे नाता रखायगा ।। यह भाई बन्धु जो तुझे करते हैं आज प्यार । जब आन बने कोई नहीं काम आयगा ।। यह याद रख कि सब हैं तेरे जीते जीके यार । आखिर तु अकेला ही मरण दुख उठायगा ।।
विभिन्न कवियों के भजन
सब मिलके जलादेंगे तुझे जाके आगमें । एक छिनकी छिनमें तेरा पता भी न पायगा ।। कर घात आठ कर्मों का निज शत्रु जानकर । बे नाश किये इनके तू मुक्ती न पायगा ।। अवसर यही है जो तुझे करना है आज कर । फिर क्या करेगा काल जो मुँह बाके आयगा ।। अय न्यामत उठ चेत क्यों मिथ्यातमें पड़ा।
जिन धर्म तेरे हाथ यह मुश्किल से आयगा ।। ६१. कर सकल विभाव अभाव मिटादो बिकलपता मन की कर सकल विभाव अभाव मिटादो बिकलपता मन की ।।टेर ।।
आप लखे आपेमें आपा गत व्योहारन की। तर्क-वितर्क तजो इसकी और भेद विज्ञानन की।। यह परमातम यह मम आतम, बात विभावन की। हरो हरो बुध नय प्रमाण की और निक्षेपन की ।। ज्ञान चरण की बिकलप छोड़ो छोड़ो दर्शन की।
न्यामत पुद्गल हो पुद्गल चेतन शक्ति चेतन की ।। ६२. अनारी जिया तुझको वह भी खबर है
अनारी जिया तुझको यह भी खबर है। किधर तुझको जाना कहाँ तेरा घर है।। मुसाफिर है दो चार दिन का यहाँ पे । न यह तेरा दर है न यह तेरा घर है ।। कहो कौन से राह जाना है तुझको । तेरे साथ में भी कोई राहबर है।। है अफसोस न्यामत तू गाफिल है इतना । न यहाँ की खबर है न वहाँ की खबर है।।
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