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________________ १९६ आध्यात्मिक भजन संग्रह बाहर तन मलिनसा दीखत अंतरंग उजला है। विषय कषाय त्याग धर धीरज, करमन रंग अडा है ।।२।। क्षुधा तृषादि परीषह विजयी आतम रंग पडा है। 'जगत राम' लख ध्यान साधुको नमूं नमू उचरा है ।।३ ।। ५३. विश्व का कोलाहल कर दूर बनूँ मैं विश्व का कोलाहल कर दूर बनूँ मैं एकाकी एकान्त । चाह हो आत्म का उद्धार बनूँ में शान्त प्रशान्त-सुशान्त ।।१।। जगत सागर में गोते खाय बिगोये मैंने जन्म अनन्त । भावना नहीं हृदय में जगी करूँ कब इन कर्मों का अन्त ।।२।। जगत में बैरी मिले अनेक निभाई अपनी-अपनी टेक । टेक में जीवन दिया बिताय न कीना मैं आत्म विवेक ।।३।। तर्क से खंडन मंडन किया विहंडन किया न पापाचार । चार दिन के जीने के लिये बनाया निज जीवन ही भार ।।४।। भार जब असहनीय हो गया जरापन की जब आई बाढ़। बाढ़ ने बना दिया कंकाल काल, बैठा अब आसन मांढ ।।५।। आत्म अब भी है समय विचार छोड़ सब जग के दुर्व्यवहार । बना निज जीवन शान्ताकार चन्द्र जिससे हो बेडापार ।।६ ।। ५४. झूठे झगड़े के झूले पर झूठे झगड़े के झूले पर झोटे खा रहा है यार ।।टेक ।। माता बहिना चाची ताई और सकल परिवार । स्वार्थ के साथी हैं तेरे कोई नहीं गम ख्वार ।।१।। लगा लिया दिल से किस किस की उल्फत का आजार । कोई नहीं सहायक होगा तेरा आखिरकार ।।२।। खाम ख्याली छोड़ बावले जाली है संसार । ऐसा मौका फिर न मिलेगा अपना जन्म सुधार ।।३ ।। अब भी सोच समझ मत मूर्ख जीती बाजी हार । रूपराम जायेगा इक दिन खाली हाथ पसार ।।४।। विभिन्न कवियों के भजन ५५. चेतन की सत्ता में दुख का क्या काम है चेतन की सत्ता में दुख का क्या काम है। परिपूर्ण ज्ञान घन आनन्द धाम है।।१।। मोह राग द्वेष सब पुद्गल परिणाम हैं। ज्ञान दर्श सुख वीर्य चेतन निधान हैं ।।२।। निजको भूल जग में हुआ हैरान है। सम्यक्त्व ग्रहण किये मिले मुक्ति थान है।।३।। ५६. चेतन निधी अपनी है, ज्ञायक निधी अपनी है चेतन निधी अपनी है, ज्ञायक निधी अपनी है।।टेक।। इसे भूल महा दुख पाये, कर जन्म मरण भरमाये । यह भव दुःख हरनी है ।।१।। अब चेत मूढ़ अज्ञानी, परपरणति तज दुःख दानी । भज समता बोधि सुखदानी जो तू चिर बिसरी है ।।२।। ५७. फँसेगा जो दुनिया में वह ख्वार होगा फँसेगा जो दुनिया में वह ख्वार होगा। रहेगा जुदा जो समझदार होगा ।।टेक ।। समझ देख दुनिया यह है धर्मशाला। यहाँ ठहरना सिर्फ दिन चार होगा ।।१।। नहीं साथ जायेगी दुनिया की दौलत । यहीँ छोड़ जाना यह घरबार होगा ।।२।। तू जिसके लिये रात दिन पाप करता। नहीं साथ तेरे ये परिवार होगा ।।३।। है चलना जरूरी तू सामान कर ले। सफर परलोक का फिर दुश्वार होगा ।।४।। धर्म ही तेरे काम आवेगा शिवराम । नहीं और कोई मददगार होगा ।।५।। EFFER sa kabata Annanjitain Bhajan Book pants (९९)
SR No.008336
Book TitleAdhyatmik Bhajan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size392 KB
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