________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates हे समयसार! तुम्हें सुनने से कर्म-रस (अनुभाग बंध) ढीला पड़ जाता है। तुम्हें जान लेने पर ज्ञानी का हृदय जान लिया जाता है। तुम्हारे प्रति रुचि उत्पन्न होते ही सांसारिक विषय-भोगों की रुचि समाप्त हो जाती है। जिस पर तुम रीझ जाते हो, उस पर उसका सम्पूर्ण सर्व ज्ञेयों को जानने के स्वभाव वाला आत्मा रीझ जाता है। तात्पर्य यह है कि सकल ज्ञेयों का ज्ञायक प्रात्मा अनुभूति में प्रगट हो जाता है। यदि तप्त स्वर्ण के पत्र बनाये जावें और उन पर रत्नों के अक्षरों से कुन्दकुन्द के सूत्रों को लिखा जाय तो भी कुन्दकुन्द के सूत्रों का मूल्य नहीं आँका जा सकता है। प्रश्न - 1. समयसार स्तुति का सारांश अपने शब्दों में लिखिये। 2. उपरोक्त स्तुति में जो छन्द तुम्हें सबसे अच्छा लगा हो, उसे अर्थ सहित लिखिये। “शास्त्रों के माध्यम से हम हजारों वर्ष पुराने आचार्यो के सीधे संपर्क में आते हैं। हमे उनके अनुभव का लाभ मिलता हैं। लोकालोक का ज्ञान तो हमें परमात्मा बनने पर ही प्राप्त हो सकेगा, किन्तु परोक्षरूप से हमें जिनवाणी द्वारा प्राप्त हो जाता है। सर्वज्ञ भगवान् के इस क्षेत्र-काल में अभाव होने एवं आत्मज्ञानियों की विरलता होने से एक जिनवाणी की ही शरण है। 48 Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com