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खोटी थी, अतः उसने एक की भी न सुनी। आखिर विभीषण को भी उसका दरबार छोड़ना ही पड़ा।
छात्र - फिर क्या हुना?
अध्यापक - राम और लक्ष्मण ने लंका पर चढ़ाई कर दी। विभीषण, सुग्रीव, नल, नील, हनुमान आदि मण्डलेश्वर राजाओं ने राम-लक्ष्मण का साथ दिया और दुराचारी रावण की जो दुर्गति होनी थी, हुई अर्थात् रावण मारा गया और राम-लक्ष्मण की विजय हुई। सीता राम को वापिस प्राप्त हो गयी। चौदह वर्ष समाप्त हुए और राम-लक्ष्मण अयोध्या वापिस आकर राज्य करने लगे।
छात्र - चलो ठीक रहा, संकट टल गया। फिर तो सीता और राम आनंद से भोगोपभोग भोगते रहे होंगे ?
___ अध्यापक - भोगों में भी आनन्द होता हैं क्या। वे तो सदा विपत्ति के घर कहे गये हैं। जब तक आत्मा में मोह-राग-द्वेष है तब तक संकट ही संकट है। सीता और राम कुछ दिन भी शान्ति से न रह पाये थे कि लोकापवाद के कारण गर्भवती सीता को राम ने निर्वासित कर दिया। भयंकर अटवी में यदि पुण्डरीकपुर का राजा वज्रजंघ उसे धर्म-बहिन बनाकर आश्रय न देता तो...
छात्र - फिर....?
अध्यापक - पुण्डरीकपुरमें ही सीताने लव और कुश दोनों जुड़वाँ भाइयों को जन्म दिया। वे दोनों भाई राम लक्ष्मण जैसे ही वीर, धीर और प्रतापी थे। उनका राम और लक्ष्मण से भी युद्ध हुआ था।
छात्र - कौन जीता?
अध्यापक - दोनों पक्ष ही अजेय रहे। हार-जीत का अन्तिम निर्णय होने के पूर्व ही उन्हें आपस में पता चल गया कि यह युद्ध तो पिता-पुत्र का है, अतः युद्धस्थल स्नेह-सम्मेलन में बदल गया।
छात्र - चलो अब तो सीता के दुःखों का अन्त हुआ ?
अध्यापक - राग की भूमिका में दुःखों का अन्त हो ही नहीं सकता। दुःख के अन्त का उपाय तो एक मात्र वीतरागता ही है।
छात्र - फिर क्या हुआ ?
अध्यापक - राम ने बिना अग्नि-परीक्षा के सीता को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया।
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