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पाठ १०
बलभद्र राम
छात्र - क्या राम और हनुमान भगवान् नहीं हैं ?
अध्यापक - कौन कहता है कि वे भगवान नहीं है ? उन्होंने मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र से मुक्ति पद प्राप्त किया है व सिद्ध भगवान् के रूप में शाश्वत विराजमान हैं। हम निर्वाणकाण्ड भाषा में बोलते है :राम हणू सुग्रीव सुडील,
गवगवाख्य नील महानील। कोड़ि निन्याणव मुक्ति पयान,
__तुंगीगिरि वंदों धरि ध्यान।। छात्र - तो क्या सुग्रीव आदि बंदर एवं नल नील आदि रीछ भी मोक्ष गये हैं ? वे भी भगवान् बन गये है ? ।
अध्यापक - हनुमान, सुग्रीव बन्दर न थे और न ही नल, नील रीछ। वे तो सर्वांग-सुन्दर महापुरुष थे, जिन्होंने अपने जीवन में आत्मसाधना कर वीतरागता और सर्वज्ञता प्राप्त की थी।
छात्र - तो इन्हें फिर वानरादि क्यों कहा जाता है ?
अध्यापक - उनके तो वंश का नाम वानरादि वंश था। इसी प्रकार रावण कोई राक्षस थोड़े ही था। वह तो राक्षसवंशी त्रिखंडी राजा था।
छात्र - लोग कहते हैं - उसके दश मुख थे। क्या यह वात सच है ?
अध्यापक - क्या दश मुख का भी कोई आदमी होता है ? उसका नाम दशमुख अवश्य था। उसका कारण यह था कि वह बालक था और पालने में लेटा था, उसके गले में एक नौ मणियों का हार पडा था, उनमें उसका प्रतिबिम्ब पड़ रहा था, अतः दश मुख दिखाई देते थे, इस कारण लोग उसे दशमुख कहने लगे।
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