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पाठ ९
दशलक्षण महापर्व
जिनेश - कहो भाई विनोद मन्दिर चलोगे ? विनोद - नहीं भाई! आज तो सिनेमा जाने का विचार है। जिनेश - क्यों ? विनोद - क्योंकि आज आत्मा में शान्ति नहीं है, कुछ मनोविनोद हो जायगा।
जिनेश - वाह भाई! सिनेमा में शान्ति खोजने चले हो? सिनेमा तो राग-द्वेष (अशांति) का ही वर्द्धक है और अब तो दशलक्षण महापर्व प्रारंभ हो गया है। ये दिन तो धर्म आराधना के हैं। इन दिनों सब लोग आत्मचिंतन, पूजन-पाठ, व्रत-उपवास आदि करते हैं एवं पूरा दिन स्वाध्याय, तत्त्वचर्चा आदि में बिताते हैं।
वैसे तो प्रत्येक धार्मिक पर्व का प्रयोजन आत्मा में वीतराग भाव की वृद्धि करने का ही होता है, किन्तु इस पर्व का संबंध विशेष रूप से आत्मगुणों की आराधना से है। अतः यह वीतरागी पर्व संयम और साधना का पर्व है।
पर्व अर्थात् मंगल काल, पवित्र अवसर। वास्तव में तो अपने प्रात्मस्वभाव की प्रतीतिपूर्वक वीतरागी दशा का प्रगट होना ही यथार्थ पर्व है, क्योंकि वही आत्मा का मंगलकारी है और पवित्र अवसर है।
उत्तमक्षमादि दशलक्षण धर्म से संबंधित होने से इसे दशलक्षण महापर्व कहते हैं।
विनोद - यह दशलक्षण धर्म क्या है ?
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