SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates दिया जा सकता है। अतः जिनवाणी में व्यवहार का कथन आया है। जैसे म्लेच्छ को समझाने के लिए भले ही म्लेच्छ भाषा का आश्रय लेना पड़े, पर म्लेच्छ हो जाना तो ठीक नहीं, उसी प्रकार परमार्थ का प्रतिपादक होने से भले ही उसका कथन हो पर वह अनुसरण करने योग्य नहीं। गुमानीराम - व्यवहार निश्चय का प्रतिपादक कैसे है ? पं. टोडरमलजी - जैसे हिमालय पर्वत से निकल कर बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली सेंकड़ों मील लम्बी गंगा की लम्बाई को तो क्या चौड़ाई को भी आँख से नहीं देखा जा सकता है, अतः उसकी लम्बाई और चौड़ाई और बहाव के मोड़ों को जानने के लिए हमें नक्शे का सहारा लेना पड़ता है। पर जो गंगा नक्शे में है वह वास्तविक नहीं है, उससे तो मात्र गंगा को समझा जा सकता है, उससे कोई पथिक प्यास नहीं बुझा सकता है। प्यास बुझाने के लिए असली गंगा के किनारे ही जाना होगा। उसी प्रकार व्यवहार द्वारा कथित वचन नक्शे की गंगा के समान हैं, उनसे समझा जा सकता है, पर उनके आश्रय से प्रात्मानुभूति प्राप्त नही की जा सकती है । ग्रात्मानुभूति प्राप्त करने के लिए तो निश्चय नय के विषयभूत शुद्धात्मा का ही आश्रय लेना आवश्यक है अतः व्यवहार नय तो मात्र जानने ( समझने ) के लिए प्रयोजनवान है। I प्रश्न १. मुक्ति का मार्ग ( मोक्षमार्ग ) क्या है ? क्या वह दो प्रकार का है ? स्पष्ट कीजिये । निश्चय मोक्षमार्ग और व्यवहार मोक्षमार्ग में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिये । २. निश्चय और व्यवहार की परिभाषायें दीजिये। निम्न उक्ति में क्या दोष है ? समझाइये | 66 'सिद्ध समान शुद्धात्मा का अनुभव करना निश्चय और व्रत - शील- संयमादि प्रवृत्ति व्यवहार है। जिनवाणी में व्यवहार का उपदेश दिया ही क्यों है ? ३. ४. ५. ६. दोनों नयों का ग्रहण करने से क्या आशय है ? ७. व्यवहार निश्चय का प्रतिपादक कैसे है ? ३७ Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008327
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1996
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size342 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy